नंद कत्याल का कहना था कि जो कुछ अव्यक्त है और अभिव्यक्ति से परे है, उसे लगातार प्रेरित करता रहता है ताकि नए की रचना हो सके | यह नया ही प्रेम और स्नेह का विकास है; हालाँकि कलाकार को अपने प्रेम की रूपंकरता और स्वरूप के बारे में खुद पूरी जानकारी नहीं होती - और वह अपने कैनवस पर इसी की खोज में डूबा रह जाता है | यही वह मुकाम है जहाँ कुछ घटने लगता है, घटनाचक्र का अपना तर्क रूप लेने लगता है | किसी मान्यता प्राप्त विचारधारा की बंदिशों से आजाद होकर ही ऐसा होता है और अनुभूत तब साकार होने लगता है | कभी - कभी कुछ घट जाता है जहाँ अपार संतोष एवं आनंद आकार ले लेता है |
नंद कत्याल का मानना और कहना था कि अनुभूतियों के साकार होने की कोई सीमायें नहीं होतीं | परिचित, अपरिचित या काल्पनिक के दिगम्बरी अनुभव पर कलाकार का कोई बस नहीं है और सब कुछ उसी के जरिये कैनवस पर घटित होता जाता है - शायद यही आधुनिक है | उत्तर आधुनिकता हमेशा आधुनिकता में ही मौजूद रहती है | रचनात्मकता की जद्दोजहद में डूबा हुआ कलाकार अपने निजी स्वभाव को खोजता रहता है और निजत्व की पहचान करते ही मूक हो जाता है | अव्यक्त किसी कदर व्यक्त हो जाता है | नंद कत्याल का निष्कर्ष था कि इस कशमकश में आधुनिकता और उत्तर आधुनिकता के सन्दर्भ बिल्कुल ही बेमानी हैं |
नंद कत्याल के इन विचारों को याद करते हुए आर्ट हैरिटेज कला दीर्घा में प्रदर्शित उनके नए चित्रों को देखना मेरे लिए एक खासा दिलचस्प अनुभव रहा |
aapne achha anubhav liya hai...
ReplyDeleteनंद कत्याल के चित्रों को मैंने भी देखा है, और मैंने पाया है की उनके चित्रों में एक तरह का वह मनोवैज्ञानिक विश्लेषण है जिसमें कलाकार का मन भूत व वर्तमान के मेल में भविष्य को टटोलने का प्रयास करता है |
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