नीनू विज की गुड़गाँव के एपैरल हॉउस में स्थित एपिसेंटर कला दीर्घा में 17 अप्रैल से आयोजित होने जा रही एकल प्रदर्शनी के शीर्षक 'एण्ड सो द स्टोरी गोज ....' ने मुझे हंगरी के विख्यात कला इतिहासकार आर्नल्ड हाऊजर की वह उक्ति याद दिला दी, जिसमें उन्होंने कलाकृति की तुलना दुनिया की ओर खुलने वाली खिड़की से की है | 'एण्ड सो द स्टोरी गोज ....' शीर्षक में मुझे ठीक खिड़की वाले अर्थ ही ध्वनित होते लगे हैं जो भविष्य की ओर - दुनिया की ओर खुलने का दावा या वायदा कर रहा है | नीनू विज की कलाकृतियों से मैं परिचित हूँ और उनकी कलाकृतियों को लगातार मैं देखता रहा हूँ | नीनू पिछले काफी समय से प्रकृति-उपकरणों को लेकर ही काम कर रहीं हैं और इन उपकरणों की एक समानता के बावजूद हर बार उनके काम में एक और गहराई दीख पड़ती है | नीनू विज के कैनवस पहली नज़र में लैंडस्केप का आभास देते हैं | लेकिन उनके चित्र निरे लैंडस्केप नहीं हैं | उनके चित्रों में प्रकृति-उपकरण किसी यथातथ्य चित्रण के रूप में प्रकट नहीं हैं, बल्कि उसी रूप में वह कैनवस पर दिखते हैं, जिसमें वह उनके मन के आकाश को बदलते रहे हैं या जिस रूप में नीनू विज के मन का आकाश उनमें अपने को प्रक्षेपित करता रहा है | भीतरी-बाहरी 'दुनिया' और स्पेस के एक गहरे अंतर्संबंध को नीनू विज के चित्रों में बराबर से साफ़ देखा / पहचाना जा सकता है | इसीलिए 'एण्ड सो द स्टोरी गोज ....' शीर्षक मुझे बहुत मौजूं भी लगा और सटीक भी | इस शीर्षक के चलते, नीनू विज के पिछले काम जब मेरी स्मृति में आते गये तो सहसा आर्नल्ड हाऊजर की खिड़की वाली उक्ति याद आ गई |
आर्नल्ड हाऊजर ने कलाकृति की तुलना जब दुनिया की ओर खुलने वाली खिड़की से करने की सोची होगी, तब उनका आशय यही रहा होगा कि देखने वाला चाहे तो सारा ध्यान खिड़की पर ही दे या बिल्कुल ही न दे | वह चाहे तो खिड़की के शीशे की गुणवत्ता, संरचना या रंग से बिना कोई मतलब रखे सीधे बाहर के दृश्य का अवलोकन करे | इस तुलना के मुताबिक, कलाकृति को अनुभवों का वाहक मात्र, खिड़की का पारदर्शी कांच या आँख का चश्मा कहा जा सकता है जिस पर पहनने वाला कोई ध्यान नहीं देता है और जो एक उद्देश्य का साधन मात्र है | इसके विपरीत, कोई चाहे तो बाहरी दृश्य को नजरंदाज करके अपना सारा ध्यान खिड़की के कांच और उसकी संरचना पर ही लगाये रह सकता है; मतलब कलाकृति को एक स्वतंत्र, अपारदर्शी रूपगत संरचना, अपने बाहर की किसी भी चीज से अलग थलग स्वयंसंपूर्ण सत्ता की तरह देख सकता है | निस्संदेह, कोई भी जब तक चाहे खिड़की के कांच पर ही टकटकी लगाये रख सकता है, लेकिन ध्यान देने की और याद रखने की बात यह है कि खिड़की बाहरी दुनिया को देखने के लिये बनी होती है |
नीनू विज के चित्रों के सामने खड़े होते ही हम अपने भीतर और बाहर 'देखने' के लिये प्रेरित होते है | नीनू विज के चित्रों में हर बड़ी-छोटी चीज का रचनात्मक इस्तेमाल होता हुआ दिखता है : जितना ध्यान उन्होंने किसी रंग की व्याप्ति पर दिया है, उतना ही उस छोटे से रंग क्षेत्र पर या रंगतों पर भी दिया है जो इस व्याप्ति के बीच - तेज 'बहाव' के बीच - झांक रहा है | शायद इसीलिए नीनू विज के चित्र लैंडस्केप का आभास देते हुए भी दरअसल जगहों, वस्तुओं, रूपों और मानसिक गतियों का एक निचोड़ हैं | रंगों में यह निचोड़, रंगभाषा के बारे में हमारी संवेदना में बहुत कुछ जोड़ता है | दरअसल यहीं आकर हम यह भी पहचान सकते हैं कि नीनू विज के चित्रों में हमारे ही रंगों के साथ हमारे मानसिक चाक्षुष बौद्विक संबंध को जैसे उजागर किया गया है; और उनके रंगबोध के स्तर पर अपने समय के साथ चलने वाले भी सिद्व हुए हैं - उन्होंने उनमें अर्थ भरे हैं और उनके साथ हमारे लिये एक संवाद की स्थिति पैदा की है |
नीनू विज के अमूर्त रूपाकारों को देखते हुए मैं इस बात को लगातार रेखांकित करता हूँ कि कला के शुद्व रूपगत नियम सारतः खेल के नियमों से भिन्न नहीं होते | ये नियम जितने भी जटिल, सूक्ष्म और उम्दा हों खेल जीतने के अलावा उनका कोई स्वतंत्र महत्त्व नहीं होता | फुटबाल के खिलाड़ी के प्रयासों को अगर हम केवल हलचल के रूप में देखेंगे तो पहले वे दुर्बोध और कुछ देर बाद उबाऊ लगने लगेंगे | कुछ देर के लिये हो सकता है कि उनकी तेजी और चपलता से थोड़ा मजा आये - लेकिन जो इस सारी दौड़धूप, उछलकूद और धक्का-मुक्की के उद्देश्य को जानता है उस विशेषज्ञ दर्शक के आनंद के मुकाबले यह अत्यंत अर्थहीन होगा | कलाकार अपनी कृति के जरिये लोगों को सूचित करने, सहमत करने, प्रभावित करने का जो लक्ष्य लेकर चला है उस लक्ष्य को यदि हम नहीं जानते या नहीं जानना चाहते तो उसकी कला के बारे में हमारी समझ फुटबाल के उस जाहिल दर्शक से बहुत आगे नहीं बढ़ सकती जो खिलाड़ियों की गति की सुंदरता के ही आधार पर फुटबाल को समझता है | कलाकृति संवाद होती है - यद्यपि यह बात पूरी तरह सही है कि इसके सफल संप्रेषण के लिये ऐसे बाहय रूप की जरूरत होती है जो एकदम प्रभावी, आकर्षक और निर्दौष हो; लेकिन यह भी उतना ही सही है कि यह रूप जो संवाद संप्रेषित करता है उसके परे इसका कोई महत्त्व नहीं होता | किसी भी कलाकृति का एक आंतरिक तर्क होता ही है और इसके विशिष्ट गुण इसके विविध स्तरों और विभिन्न मूल भावों के आंतरिक संरचनात्मक संबंधों में सर्वाधिक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ते ही हैं |
यह आकस्मिक नहीं है कि केशव मलिक जैसे कला मर्मज्ञ ने कुछ ही वर्ष पहले इस तथ्य को रेखांकित किया था कि नीनू विज उन युवा चित्रकारों में हैं जिनके चित्रों में चित्रता गुण भरपूर है और चित्रभाषा की उपस्थिति, एक वास्तविक उपस्थिति लगती है - एक ऐसी उपस्थिति जो स्वयं को देखे जाने के लिये ठिठकाती तो है ही, साथ ही अपने होने को विश्लेषित करने के लिये हमें तरह-तरह से उकसाती और प्रेरित भी करती है |
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