Sunday, December 27, 2009

अकबर पदमसी के चित्रों का भारतीय समकालीन कला के संदर्भ में एक विशेष महत्त्व है


अकबर पदमसी की नई पेंटिंग्स अगले माह मुंबई की पुंदोले आर्ट गैलरी में प्रदर्शित होंगी | इसी दौरान 'वर्क इन लेंग्वेज' शीर्षक किताब का विमोचन भी होगा, जिसमें अकबर पदमसी की कामकाज का व्यापक मूल्यांकन व विश्लेषण किया गया है | 1928 में जन्में अकबर पदमसी एक अत्यंत सक्रिय कलाकार हैं और कला के बाज़ार में भी लगातार अपनी धाक बनाये हुए हैं | पिछले दिनों ही उनकी पेंटिंग्स अंतर्राष्ट्रीय कला बाज़ार में ऊंची कीमतों पर बिकी हैं | अपने काम, अपनी सक्रियता और कला बाज़ार की हलचलों के केंद्र में रहने के कारण अकबर पदमसी कला प्रेक्षकों के बीच निरंतर चर्चा में रहते हैं; और उनका नया या पुराना काम देखने को मिलता रहता है | अकबर ने अपने जीवन के बहुत से वर्ष पेरिस में बिताएं हैं | यह तथ्य उनकी कृतियों को देखते हुए जैसे हर बार ध्यान में रखने लायक है | क्योंकि कला क्षेत्र में जिसे 'पेरिस स्कूल' कह कर पुकारा / पहचाना जाता है, उसकी चित्र-भाषा से एक संबंध अकबर की कृतियों का जुड़ता है | अकबर पदमसी के आरंभिक आकृतिमूलक काम हों या बाद के लैंडस्केप हों - दोनों में ही हम जो चित्रभाषा देखते हैं वह आधुनिक यूरोपीय चित्रभाषा की उपलब्धियों से दूर तक जुड़ी हुई हैं | गौर करने की बात यह है कि यह चित्रभाषा अकबर की कृतियों में अनायास नहीं चली आई थी - और वह सतही नहीं है | उसे अकबर पदमसी ने अपने चित्रफलक पर 'अर्जित' भी किया है |
अर्जित करने की इस प्रक्रिया में दो बातें हुईं : अकबर की चित्रभाषा तत्कालीन पेरिस-कलादृश्य के अधीन निरंतर एक मँजाव ढूंढती रहीं और इस बात का प्रयत्न भी करती रहीं कि वह उनके अपने 'स्वभाव' को भी बरकरार रखे | अपने लिये आदर्श मानी गई चित्रभाषा में किस हद तक उनका स्वभाव विलीन हुआ, इसका तो अनुमान ही लगाया जा सकता है, लेकिन इस में संदेह नहीं कि अकबर पदमसी ने उस काल में कई सधी हुई कृतियों की रचना की | रसोई के कुछ उपकरणों को लेकर किया गया उनका 'अचल जीवन' ऐसी ही एक कृति है, जिसमें उपकरणों पर आरोपित दमकते रंगों और पृष्ठभूमि के रंगों के एक अंतर्निर्भर संबंध से निर्जीव वस्तुओं ने अपने 'मौन' को एक विश्वसनीय रंगभाषा में तोड़ा | उनके शुरू के आकृतिमूलक काम में भी जैसे एक सधी हुई देह लय (आकारिक रेखाओं) और टेक्सरयुक्त सघन रंगों में पहले हम एक स्तब्धता के निकट पहुँचते हैं, और फिर धीरे धीरे यह स्तब्धता टूटने लगती है |
अकबर पदमसी के अमूर्त से लैंडस्केप में - जिनमें अधिकतर में अर्द्वचंद्राकार और रंग चाकू से लगाये गये विविध लेकिन मद्विमवर्णी थक्के ही हैं - भी हम एक विश्रांति और इसी विश्रांति से धीरे धीरे प्रकट होती एक सुगबुगाहट देखते हैं | इस तरह से कहना भले ही चित्रों को शाब्दिक अर्थ में लेना लगे - हम देखते हैं कि उनकी कला का मुख्य स्वभाव विश्रांति और चुप्पी का ही है - ऐसी विश्रांति और चुप्पी जो अपनी शर्तों पर ही अपने को क्रमशः तोड़ेगी : तोड़ेगी, लेकिन एक निश्चित सीमा तक ही | अकबर पदमसी के स्याह सफेद रेखांकनों के चेहरों में एक ओर जलीय सी उपस्थिति है - दूसरी ओर एक आकारिक दृढ़ता भी | स्याह सफेद के अनुपात बहुत सधे हुए हैं | जाहिर है कि इनके पीछे सधे हाथों का एक लंबा अनुभव है, वरना इन रेखांकनों में चित्रभाषा और मर्म - दोनों के ही सरलीकरण कम नहीं हैं | चीनी-जापानी जलीय अंकन के कुछ प्रभाव भी उनके काम में दिखते हैं | उनके चित्रों में व्यक्त होता सा दिखता कथ्य - उनके बिंबों की भंगिमा - अक्सर चित्रभाषा की एक कठिन अनुशासनी सर्वोपरिता में अपने को विलीन और अभिव्यक्त करती है | अकबर पदमसी ने अपने कई चित्रों में चटख रंगों का प्रयोग भी किया है जो भारतीय रंग स्वभाव के अधिक निकट है | अकबर पदमसी के चित्रों का रचनाकाल करीब करीब छह दशकों तक फैला हुआ है, इसलिए भारतीय समकालीन कला के संदर्भ में उनके काम का एक विशेष महत्त्व है | उनके काम को देखना-समझना जैसे एक बड़े दौर को देखने-समझने की तरह है|
अकबर पदमसी के कुछेक चित्रों को आप यहाँ भी देख सकते हैं :










































































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