कोलकाता पहुंचा तो जरूरी कामों की फेहरिस्त में बिकास भट्टाचार्य का काम देखना भी दर्ज था, जिसे मैं किसी भी हालत में पूरा कर लेना चाहता था | बिकास भट्टाचार्य का काम यूं तो मैंने दिल्ली में कई बार देखा है, लेकिन एक बार किसी ने कहा था कि कोलकाता में घूमते / रहते हुए बिकास भट्टाचार्य के काम को देखना एक अलग ही तरह का अनुभव होता है | कुछेक वर्ष पहले, यह सुन कर मैंने जैसे ठान लिया था कि जब भी कोलकाता जाऊँगा पहला काम बिकास भट्टाचार्य की पेंटिंग्स देखने का करूंगा | मैंने ठान तो लिया था लेकिन बात आई-गई सी हो गई थी, क्योंकि कोलकाता जाने का कोई मौका ही नहीं मिला | लेकिन लगता है कि जो ठाना था, वह गहरे घर कर गया था; क्योंकि रोटरी इंटरनेशनल के एक कार्यक्रम में कोलकाता जाने का प्रोग्राम जब सचमुच बना और कार्यक्रम के स्थानीय आयोजक ने पूछा कि कोलकाता में मैं कहाँ कहाँ जाना चाहूँगा, तो जैसे बेसाख्ता मेरे मुंह से यही निकला की मैं वहाँ बिकास भट्टाचार्य का काम जरूर देखना चाहूँगा | मैं यह सचमुच जानना / समझना चाहता था कि जिस किसी ने भी यह कहा था कि - कोलकाता में घूमते / रहते हुए या कहें कि कोलकाता को देखते हुए बिकास भट्टाचार्य के काम को देखना एक अलग ही तरह का अनुभव होता है, वह यूं ही कहा था या उस कहे हुए के कोई खास मतलब भी थे |
बिकास भट्टाचार्य के काम और उनके चित्रकार बनने की कथा ने मुझे यूं भी खासा उद्वेलित किया है | उन्होंने अपनी कला को जिस तरह सामाजिक यथार्थ से जोड़ा और उनके आसपास की ज़िन्दगी व दिन-प्रतिदिन के अनुभव, संवेग, विचार उनके आत्म प्रत्यक्षीकृत हो उनके चित्रों में आकार ग्रहण करते रहे; और जो देश, काल व समाज के यथार्थ के साथ उसकी विसंगतियों व विद्रूपताओं को उजागर करने का जरिया बने - वह बिकास भट्टाचार्य के विजन तथा अपने विजन को केनवस पर ट्रांसफर करने की उनकी कलात्मक सामर्थ्य को प्रकट करती है | उन्होंने यह विजन और सामर्थ्य कहाँ से पाया - इसे जानने / समझने में उनके जीवन के शुरुआती दिनों के उनके संघर्ष की कथा काफी मदद करती है |
बिकास भट्टाचार्य का जन्म सीलन, गंदगी और अभावों से भरी एक मलिन बस्ती के एक बहुत ही साधारण से परिवार में हुआ था | उनके जन्म लेने के कुछ ही समय बाद उनके पिता का आकस्मिक निधन हो गया था | परिवार चलाने के लिये उनकी विधवा माँ को मजदूरी करनी पड़ी | उससे भी मुश्किल से ही गुजारा हो पाता | इसी कारण, बिकास को होश सँभालते-सँभालते ही मजदूरी करने के लिये मजबूर होना पड़ा | बिकास ने बचपन तो जैसे 'देखा' ही नहीं | गरीबी, अभाव, मजबूरी और संघर्ष के बीच ही बिकास ने न सिर्फ होश संभाला, बल्कि अपने जीवन की दिशा भी तय की; और यहीं उनमें कला के बीज पड़े / पनपे | पच्चीस वर्ष की उम्र में बिकास ने अपने चित्रों की जो पहली एकल प्रदर्शनी की, उसने कोलकाता के लोगों के बीच इस कारण से धूम मचाई थी क्योंकि उनके चित्रों में उपेक्षित व शनै-शनै मरते हुए कोलकाता की सच्चाई को उदघाटित किया गया था |
बिकास भट्टाचार्य का जन्म सीलन, गंदगी और अभावों से भरी एक मलिन बस्ती के एक बहुत ही साधारण से परिवार में हुआ था | उनके जन्म लेने के कुछ ही समय बाद उनके पिता का आकस्मिक निधन हो गया था | परिवार चलाने के लिये उनकी विधवा माँ को मजदूरी करनी पड़ी | उससे भी मुश्किल से ही गुजारा हो पाता | इसी कारण, बिकास को होश सँभालते-सँभालते ही मजदूरी करने के लिये मजबूर होना पड़ा | बिकास ने बचपन तो जैसे 'देखा' ही नहीं | गरीबी, अभाव, मजबूरी और संघर्ष के बीच ही बिकास ने न सिर्फ होश संभाला, बल्कि अपने जीवन की दिशा भी तय की; और यहीं उनमें कला के बीज पड़े / पनपे | पच्चीस वर्ष की उम्र में बिकास ने अपने चित्रों की जो पहली एकल प्रदर्शनी की, उसने कोलकाता के लोगों के बीच इस कारण से धूम मचाई थी क्योंकि उनके चित्रों में उपेक्षित व शनै-शनै मरते हुए कोलकाता की सच्चाई को उदघाटित किया गया था |
बिकास भट्टाचार्य ने अपनी पहली ही प्रदर्शनी से कोलकाता के कला जगत में अपनी धाक जमा ली थी, जिसके बाद फिर उनके लिये राष्ट्रिय व अंतर्राष्ट्रीय ख्याति बहुत दूर नहीं रह गई थी | बिकास अभी तीस वर्ष के भी नहीं हुए थे कि उनकी पेंटिंग्स को पेरिस की द्विवार्षिकी में स्थान मिला | इकतीस वर्ष की उम्र में उन्हें ललित कला अकादमी का पुरस्कार मिला | देश-विदेश की अनेकों प्रतिष्ठित प्रदर्शनियों और आर्ट गैलरियों में उनके चित्रों को सम्मानपूर्ण तरीके से स्थान मिला और उन्हें ढेर सारा मान व प्रशंसा | इसके बावजूद बिकास इस सम्मान और प्रशंसा से नहीं, बल्कि अपने काम से पहचाने गये हैं | शहरी बंगाली मध्य वर्ग की मानसिकता को, उसके सामाजिक परिवेश को, उसकी विसंगति व विद्रूपता को जिस गहरी समझ व दोटूक ढंग से बिकास भट्टाचार्य ने केनवस पर चित्रित किया है - वह अपने आप में कला प्रेक्षकों के लिये एक अनोखा अनुभव रहा; और उनके इसी अनोखे अनुभव ने बिकास भट्टाचार्य को बड़ा कलाकार तो बनाया ही, उन्हें खास पहचान भी दी |
बिकास भट्टाचार्य की इस पहचान ने पेंटिंग्स के उद्देश्यपरक होने की बात को स्वीकृति व मान दिलाने का काम भी किया | अन्यथा इस बात को हेय रूप में देखा / माना जाता था | अपने इस काम के जरिये बिकास ने समकालीन कला को एक नई भाषा और एक नया व्याकरण दिया | बिकास भट्टाचार्य का विश्वास चूंकि यथार्थवादी चित्रण में रहा है, इसी कारण से उनके बनाये चित्र प्रायः फोटो जैसे दिखते हैं; हालाँकि कथ्य के अनुरूप उन्होंने अक्सर चित्रों में की आकृतियों का विरूपीकरण भी किया है | उनका मानना और कहना रहा है - जिसे उन्होंने अपने चित्रों में अभिव्यक्त भी किया है - कि चित्र को दर्शक के साथ संवाद स्थापित करना चाहिए, न कि उसे चित्रकार के विचारों को संप्रेषित करने का काम | बिकास भट्टाचार्य ने कोलकाता में अभाव, गरीबी व मजबूरी के शिकार लोगों के बीच अपना बचपन व किशोरावस्था बिताते हुए जीवन-जगत की जिस सच्चाई को पहचाना उसे ही कलात्मक संवेदना के साथ केनवस पर उकेरा | यही कारण रहा कि उनकी कला ने दर्शक के साथ विश्वास का रिश्ता बनाया | कोलकाता में घूमते / रहते हुए बिकास भट्टाचार्य के काम को देखते हुए इस रिश्ते की व्यापकता व गहराई की और-और परतें मैंने खुलती हुई पाईं तथा पहचानीं |
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