Tuesday, May 11, 2010

पारुल की चित्रकृतियों में रूपकालंकारिक छवियों को बहुत सूक्ष्मता के साथ विषयानुरूप चित्रित किया गया है

त्रिवेणी कला दीर्घा में 28 मई से शुरू हो रही पारुल आर्य के चित्रों की 'अ मैटर ऑफ फेथ' शीर्षक एकल प्रदर्शनी में व्यक्ति के विश्वास के विविधतापूर्ण रूपों की अभिव्यक्ति को देखा जा सकेगा | पारुल के चित्रों की यह चौथी एकल प्रदर्शनी है, जो करीब तीन वर्ष बाद हो रही है | इससे पहले, सितंबर 2007 में 'नेचर' शीर्षक से उनके चित्रों की तीसरी एकल प्रदर्शनी हुई थी | उससे पहले, वर्ष 2006 तथा वर्ष 2004 में क्रमशः 'एक्सप्रेशंस' तथा 'सिटी स्पेस' शीर्षक से उन्होंने अपने चित्रों की एकल प्रदर्शनी की थी | इस बीच अमेरिका के कोलंबिया में पोर्टफोलिओ आर्ट गैलरी में भी कला प्रेक्षकों व दर्शकों को उन्होंने अपने चित्रों को दिखाया है | 'ह्युमनिटी चैलेंजेड' शीर्षक से नई दिल्ली की ललित कला अकादमी की कला दीर्घा में आयोजित हुई एक समूह प्रदर्शनी में भी पारुल ने अपने चित्रों को प्रदर्शित किया था | पारुल को अपनी कला प्रतिभा को निखारने तथा उसे वैचारिक स्वरूप प्रदान करने का मौका उस समय मिला, जब उन्होंने नई दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविधालय से पहले बीएफए और फिर एमएफए किया | कला की औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के साथ पारुल ने अपनी जिस कला-यात्रा को समकालीन कला जगत में विधिवत रूप से शुरू किया, उसमें उन्होंने प्रायः एक दार्शनिक भावभूमि पर खड़े होकर ही अपने चित्रों की रचना की है | पारुल आर्यकी सिटी स्पेस श्रृंखला की 'सिटी ऑफ कलर्स', 'पर्पल हेज', 'रिफ्लेक्शन ऑफ नाईट', 'इन द लैंपलाइट' शीर्षक चित्रकृतियाँ तथा ह्युमनिटी चैलेंजेड श्रृंखला की 'द सर्च', 'इयरिंग', 'माई इंसपिरेशन', 'होप' शीर्षक चित्रकृतियाँ न केवल अपनी अंतर्वस्तु में महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं, बल्कि फॉर्म में भी महत्त्वपूर्ण हैं |
इनके अलावा 'डिवोशन', 'वाइल्ड फैंटेसी', 'सन एण्ड लीव्स', 'ए ट्री बाय माई विंडो' शीर्षक चित्रकृतियों में भी गंभीर दार्शनिक विमर्शों को पारुल ने जिस तरह चित्रित किया है, उसके चलते ही उन्हें युवा कलाकारों के बीच एक अलग पहचान मिली है | 'अ मैटर ऑफ फेथ' शीर्षक की चित्रकृतियों में जीवन के द्वैत को बखूबी दर्शाया गया है | जीवन के द्वंद्वात्मक स्वरूप को चित्रित करती ये कलाकृतियाँ पारुल की रचनात्मकता के एक नये आयाम से हमारा परिचय कराती हैं | इन चित्रकृतियों में रूपकालंकारिक छवियों को बहुत सूक्ष्मता के साथ विषयानुरूप चित्रित किया गया है | उनकी कला यात्रा के इस चरण की चित्रकृतियों का चरित्र रूपकालंकारिक तो है ही, साथ ही वह रेटॉरिकल भी है | पारुल की पेंटिंग्स से गुज़रना अपने आस-पास की दुनिया को अपने भीतर जगह बनाते हुए महसूस करते गुज़रने जैसा है, और इस तरह एक अलग अनुभव देता है | यूं तो प्रत्येक कलाकार के लिये यह अभीष्ट है कि वह अपनी विशिष्टताओं और सृजन शैली के माध्यम से एक भिन्न तरह की कला का सृजन      करे | वास्तव में यह सचमुच की जीती जागती दुनिया का ही कलात्मक प्रत्याख्यान होता है जिसमें उस कलाकार की अपनी जीवन-दृष्टि, संवेदना और अनुभव समाहित होते हैं |
पारुल के कुछेक काम एक चेहरे के इर्द-गिर्द हैं - अपने रूपों, विरूपणों और विकृतियों में व्यक्त होता एक मानवीय चेहरा | लेकिन उनके कई कामों में मानवीय चेहरे या आकृतियों के साथ वाहय-जगत की उपस्थिती भी दिखती है | यह वाहय-जगत कभी व्यक्ति (चेहरे) के कंट्रास्ट में है, कभी द्वंद्व में तो कभी सहयोजन में | व्यक्ति के आभ्यंतर और वहिर्जगत का संबंध पारुल के चित्रों में अनेक रूपाकारों में तो दर्ज है ही, उसे उनके अमूर्त चित्रों में भी पहचाना जा सकता है | पारुल के चित्रों का प्रतिसंसार एक ओर मनुष्य के अंतर्जगत की उथल-पुथल को रूपायित करता है, तो दूसरी ओर व्यक्ति को बाहय-परिवेश से द्वंद्वरत दिखाता है | पारुल के चित्रों की विवरण-बहुलता एक खास अर्थवत्ता रखती है और इसी कारण से हमें हमारे विश्वासों और हमारे आसपास की स्थितियों के प्रति सोचने-विचारने के लिये प्रेरित करती है |
28 मई से नई दिल्ली की त्रिवेणी कला दीर्घा में शुरू हो रही 'अ मैटर ऑफ फेथ' शीर्षक एकल प्रदर्शनी में पारुल आर्य के चित्रों को 6 जून तक देखा जा सकेगा |

5 comments:

  1. The art work looks very refreshing.... and the theme evoke thoughts.....

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  2. Nice Paintings....Superb !!!!

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  3. paintings are good, but i couldnt figure out the motivation behind them ... the concept.

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  4. Imagination derives creation............Parul ji, is best in her way of expressions.

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