नई दिल्ली की आईफैक्स कलादीर्घा में हाल ही में प्रदर्शित सुनियता खन्ना की पेंटिंग्स ने कला और आध्यात्म के संबंध को खासे सृजनात्मक रूप में प्रस्तुत ही नहीं किया है, बल्कि एक नई मिथक-चेतना से हमें परिचित भी कराया है | आध्यात्मिक मिथकों का मौलिक व नए-नए विन्यास से युक्त जो रचना-कर्म सुनियता की पेंटिंग्स में दिखता है, उसमें काल-बोध के साथ वस्तु-बोध की विशिष्टता या अनोखापन सहज रूप में आकर्षित भी करता है और प्रभावित भी | 'बिम्ब - प्रतिबिम्ब' शीर्षक के तहत प्रदर्शित पेंटिंग्स न केवल अपनी अंतर्वस्तु में महत्त्वपूर्ण हैं, बल्कि फॉर्म में भी उल्लेखनीय हैं | सुनियता ने अपनी चित्रकृतियों में जीवन के द्वैत को बखूबी दर्शाया है | जीवन के द्वंद्वात्मक स्वरूप को चित्रित करती सुनियता की बनाई पेंटिंग्स उनकी सृजनात्मक क्षमता की साक्षी भी हैं | प्रदर्शित पेंटिंग्स में रूपकालंकारिक छवियों को बहुत सूक्ष्मता के साथ विषयानुरूप चित्रित किया गया है | उनकी पेंटिंग्स का चरित्र रूपकालंकारिक भी है और 'रेटारिकल' भी | सुनियता की पेंटिंग्स के प्रायः समूचे आकार अत्यंत कलात्मक भव्यता से चित्रित हुए हैं और एक स्वप्नलोक व एक रहस्यमयता का परिदृश्य-सा बनाते हैं, पर जो वास्तव में मन की एकाग्रता व गहराई से उपजते हैं और एक दर्शक के रूप में हम पर भी वह कुछ उसी तरह का प्रभाव छोड़ते हैं |
ऐसे समय में जबकि बाज़ार ने कला को लगभग कब्ज़ा लिया है, सुनियता की पेंटिंग्स की यह प्रदर्शनी सूक्ष्म सौन्दर्य और आत्मिक विचारों के नजरिये से उम्मीद की एक रोशनी की तरह लगी है | जीवन की भौतिक अवधारणा और जीवन की आध्यात्मिक अवधारणा के बीच मुख्य अंतर एक ही होता है : वह है विश्व-दृष्टि का अंतर | इस विश्व-दृष्टि ने कला पर भी व्यापक प्रभाव डाला है, और इसी प्रभाव के कारण कला को आत्म में स्थित आत्म की अभिव्यक्ति के रूप में देखने की प्रेरणा मिली है | यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि उन्नीसवीं सदी के उत्तर्रार्ध में रूसी चित्रकार वेसीली केंदिस्की ने आध्यात्म विषय पर म्यूनिख में एक किताब 'ऑन द स्प्रिचुअल इन आर्ट' प्रकाशित की थी, जो कला और आध्यात्म के संबंध के सन्दर्भ में बहुत महत्वपूर्ण
सिद्ध हुई थी | समकालीन कला में आध्यात्म ने एक विषय के रूप में लोगों का ध्यान उस बड़ी प्रदर्शनी के आरम्भ होने के साथ खींचना शुरू किया था जिसे लॉस एंजिल्स के काउंटी म्यूजियम ऑफ मॉडर्न आर्ट में 1986 - 87 और बाद में शिकागो व हयूग में प्रदर्शित किया गया था | उस अवसर पर 'द स्प्रिचुअल आर्ट एब्सट्रैक्ट पेंटिंग 1890 - 1987' शीर्षक से एक महत्वपूर्ण केटलॉग का प्रकाशन भी किया गया था |
आध्यात्म को जीवन की अंतर्यात्रा के मार्ग के रूप में देखा गया है, जिसे आत्म उन्नयन के लिए आवश्यक माना गया है | कला की सार्थकता चूंकि पूर्णता में होती है और यही 'पूर्णता' की जिज्ञासा या खोज या उसे छूने की कोशिश कला का आध्यात्म है | सुनियता की पेंटिंग्स में हम कला के इसी आध्यात्म को अभिव्यक्त होते देख सकते हैं | उनकी चित्रकृतियाँ अपनी कला भाषा और अंतर्वस्तु से पवित्रता का बोध कराती हैं - तो इसका कारण शायद यही होगा कि सुनियता ने इन्हें बहुत आध्यात्मिक भाव से चित्रित किया है | इसी से हम अनुमान लगा सकते हैं कि सुनियता की कला चेतना का आध्यात्मिकीकरण एक लम्बी प्रक्रिया का परिणाम है |
Friday, September 25, 2009
Friday, September 18, 2009
बच्चों की चित्रकला
देवी प्रसाद की लिखी एक अनोखी पुस्तक 'शिक्षा का वाहन कला' मुझे अभी हाल ही में अचानक हाथ लगी | शिक्षाविद व कलाविद के रूप में ख्याति प्राप्त देवी प्रसाद, रवीन्द्रनाथ ठाकुर के स्कूल शान्तिनिकेतन के स्नातक थे | सेवाग्राम की आनंद-निकेतन शाला में कला विशेषज्ञ के रूप में काम करते हुए बालकों के साथ हुए अपने अनुभवों के आधार पर देवी प्रसाद ने करीब पचास वर्ष पहले यह पुस्तक तैयार की थी | यह पुस्तक बच्चों की कला को लेकर पैदा होने वाले सवालों का बड़े ही तर्कपूर्ण, व्यावहारिक तथा दिलचस्प तरीके से जवाब देती है | उल्लेखनीय है कि बच्चों के बनाये चित्रों को लेकर आमतौर पर काफी सारी गलतफहमियां हम बड़े पाल लेते हैं | जहाँ एक ओर बच्चों द्वारा बनाये चित्रों को हम काफी हल्के तौर पर लेते हैं वहीं दूसरी ओर बाल चित्रकला को लेकर हमारी काफी सारी जिज्ञासाएं भी होती हैं | इस पुस्तक में सवाल और जवाब के रूप में बात कही गई है | पुस्तक में दिए गए सवाल और उनके जवाब हमारी जिज्ञासाओं को सचमुच दिलचस्प तरीके से पूरा करते हैं | कुछ विशेष सवाल और उनके जवाब आप भी देखिए :
सवाल :बच्चों के चित्रों का अभिप्राय बहुत दफे मुझे समझ में नहीं आता है, तो क्या वह बच्चों से पूछ लेना ठीक है ?
जवाब : हाँ, बच्चे ने जो चित्र बनाया है अक्सर वह उसका मौखिक वर्णन करना भी पसंद करता है | मैंने अक्सर पाया है कि अपने चित्र पर या उससे संबद्ध किसी विषय पर साथ-साथ लेख लिखना कुछ बच्चों को खूब अच्छा लगता है, इसलिए चित्र का अभिप्राय पूछ लेने में कोई नुकसान नहीं है | लेकिन यह पूछा इस तरह जाना चहिए कि बच्चा जवाब न देना चाहे तो उसके लिए बचने का मौका होना चाहिए | क्योंकि उसे जो कहना था उसने चित्र में कह ही दिया है, इसके बाद भी उसे कुछ कहना है तो उसे कह सकेगा | हमें उसकी भाषा और उसका मन समझना चाहिए | इस संबंध में जितना हमारा अनुभव बढ़ेगा, उतना ही हम बिना पूछे बच्चों के चित्रों के अभिप्राय स्वयं समझने में समर्थ होंगे | मनोवैज्ञानिक तो बच्चों के चित्रों से केवल चित्रों का अभिप्राय ही नहीं, उनके मन की गहराई की बातें भी समझने का प्रयास करते हैं |
सवाल : बच्चों ने रंगों का गलत उपयोग किया हो, तो उन्हें सुधारना चाहिए क्या ?
जवाब : गलत माने क्या ? क्या अपने कपड़ों पर लगा लिया, या जमीन पर बिखेर दिया या एक-दूसरे के मुहं पर या कपड़ों पर लगा दिया | अगर ऐसा हो, तो जरूर बच्चों को इसके बारे में प्रोत्साहन नहीं देना चाहिए | किंतु अगर चित्र के अंदर उसने अपने ढंग से रंगों का उपयोग किया है, तो उसे आप गलत कैसे कह सकते हैं ?
सवाल : एक बच्चा चित्र बनाता है, जिसका कोई अर्थ नहीं दिखता | तो क्या उससे पूछना नहीं चाहिए कि क्यों भाई, क्या सोच के चित्र बनाया है ?
जवाब : पूछने में कोई हर्ज नहीं है | अच्छा ही है | इससे उसका चिंतन विकसित हो सकता है | किंतु यह ऐसे नहीं पूछा जाना चाहिए कि उसे लगे जैसे उसे डपटा जा रहा है |
सवाल : बच्चे अगर गलत रंग का इस्तेमाल करते हैं, जैसे पेड़ को बैंगनी या लाल बनाते हैं तो क्या उसे ठीक करने के लिए नहीं कहना चाहिए ?
जवाब : प्रकृति का पेड़ अलग होता है और कलाकार के मन का पेड़ अलग | और फिर बच्चों का तो बिल्कुल ही अलग | इसमें आनंद ही लिया जाना चाहिए | यह उनकी कवि-कल्पना होती है | उसे कौन सुधार सकता है |
सवाल : बच्चा अगर पूछे कि वह क्या बनाये, उसे चित्र बनाने का कोई विषय न सूझ रहा हो तो क्या करना चाहिए ?
जवाब : उसे कोई कहानी सुना कर, कुछ प्रत्यक्ष अनुभव करा कर विषय तय करने के लिए प्रेरित करना चाहिए | विषय भी सुझाया जा सकता है |
सवाल : महान कलाकारों की कृतियों से सीखने और उनके अनुभवों से लाभ उठाने का मौका बच्चों को किस तरह देना चाहिए ?
जवाब : आमतौर पर सयानों का प्रभाव बच्चों की कला पर पड़े, तो उनकी स्वाभाविकता नष्ट हो जाती है | महान कलाकारों की कृतियों से सीखने के लिए और उनके अनुभव से लाभ उठाने के लिए बहुत समय है | दस-बारह वर्ष के बाद बच्चा जब सयानों के जगत में प्रवेश करता है तब अगर उसे यह अनुभव मिले, तभी वह स्वाभाविक माना जाएगा | हाँ, कला-बोध की दृष्टि से ये कृतियाँ बच्चों को देखने को मिलती रहें, तो कोई नुकसान नहीं है |
सवाल : कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो आलंकारिक पैटर्न बनाना ही पसंद करते हैं | क्या उन्हें ऐसा करने देना चाहिए ?
जवाब : पैटर्न ही केवल बनाते रहें, यह ठीक नहीं है | उन्हें चित्र बनाने के लिए भी उत्साहित करना चाहिए | यूं ऐसे कुछ अपवाद हो सकते हैं, जबकि बच्चा हमेशा नए-नए पैटर्न बनाने वाला हो | ऐसी हालत में उसी प्रवृत्ति का विकास करना अच्छा होगा |
सवाल : किस उम्र तक बच्चों को अपने ही मन से चित्र बनाने देना चाहिए ?
जवाब : इसका कोई नियम नहीं बनाया जा सकता | कुछ बच्चों के लिए तो बिना सुझाव के काम कर पाना कभी भी संभव नहीं होता और उन्हें हमेशा ही सलाह की जरूरत होती है | लेकिन कई बच्चे ऐसे भी होते हैं, जो अपनी मर्जी से काम करते-करते आगे बढ़ जाते हैं |
सवाल :बच्चों के चित्रों का अभिप्राय बहुत दफे मुझे समझ में नहीं आता है, तो क्या वह बच्चों से पूछ लेना ठीक है ?
जवाब : हाँ, बच्चे ने जो चित्र बनाया है अक्सर वह उसका मौखिक वर्णन करना भी पसंद करता है | मैंने अक्सर पाया है कि अपने चित्र पर या उससे संबद्ध किसी विषय पर साथ-साथ लेख लिखना कुछ बच्चों को खूब अच्छा लगता है, इसलिए चित्र का अभिप्राय पूछ लेने में कोई नुकसान नहीं है | लेकिन यह पूछा इस तरह जाना चहिए कि बच्चा जवाब न देना चाहे तो उसके लिए बचने का मौका होना चाहिए | क्योंकि उसे जो कहना था उसने चित्र में कह ही दिया है, इसके बाद भी उसे कुछ कहना है तो उसे कह सकेगा | हमें उसकी भाषा और उसका मन समझना चाहिए | इस संबंध में जितना हमारा अनुभव बढ़ेगा, उतना ही हम बिना पूछे बच्चों के चित्रों के अभिप्राय स्वयं समझने में समर्थ होंगे | मनोवैज्ञानिक तो बच्चों के चित्रों से केवल चित्रों का अभिप्राय ही नहीं, उनके मन की गहराई की बातें भी समझने का प्रयास करते हैं |
सवाल : बच्चों ने रंगों का गलत उपयोग किया हो, तो उन्हें सुधारना चाहिए क्या ?
जवाब : गलत माने क्या ? क्या अपने कपड़ों पर लगा लिया, या जमीन पर बिखेर दिया या एक-दूसरे के मुहं पर या कपड़ों पर लगा दिया | अगर ऐसा हो, तो जरूर बच्चों को इसके बारे में प्रोत्साहन नहीं देना चाहिए | किंतु अगर चित्र के अंदर उसने अपने ढंग से रंगों का उपयोग किया है, तो उसे आप गलत कैसे कह सकते हैं ?
सवाल : एक बच्चा चित्र बनाता है, जिसका कोई अर्थ नहीं दिखता | तो क्या उससे पूछना नहीं चाहिए कि क्यों भाई, क्या सोच के चित्र बनाया है ?
जवाब : पूछने में कोई हर्ज नहीं है | अच्छा ही है | इससे उसका चिंतन विकसित हो सकता है | किंतु यह ऐसे नहीं पूछा जाना चाहिए कि उसे लगे जैसे उसे डपटा जा रहा है |
सवाल : बच्चे अगर गलत रंग का इस्तेमाल करते हैं, जैसे पेड़ को बैंगनी या लाल बनाते हैं तो क्या उसे ठीक करने के लिए नहीं कहना चाहिए ?
जवाब : प्रकृति का पेड़ अलग होता है और कलाकार के मन का पेड़ अलग | और फिर बच्चों का तो बिल्कुल ही अलग | इसमें आनंद ही लिया जाना चाहिए | यह उनकी कवि-कल्पना होती है | उसे कौन सुधार सकता है |
सवाल : बच्चा अगर पूछे कि वह क्या बनाये, उसे चित्र बनाने का कोई विषय न सूझ रहा हो तो क्या करना चाहिए ?
जवाब : उसे कोई कहानी सुना कर, कुछ प्रत्यक्ष अनुभव करा कर विषय तय करने के लिए प्रेरित करना चाहिए | विषय भी सुझाया जा सकता है |
सवाल : महान कलाकारों की कृतियों से सीखने और उनके अनुभवों से लाभ उठाने का मौका बच्चों को किस तरह देना चाहिए ?
जवाब : आमतौर पर सयानों का प्रभाव बच्चों की कला पर पड़े, तो उनकी स्वाभाविकता नष्ट हो जाती है | महान कलाकारों की कृतियों से सीखने के लिए और उनके अनुभव से लाभ उठाने के लिए बहुत समय है | दस-बारह वर्ष के बाद बच्चा जब सयानों के जगत में प्रवेश करता है तब अगर उसे यह अनुभव मिले, तभी वह स्वाभाविक माना जाएगा | हाँ, कला-बोध की दृष्टि से ये कृतियाँ बच्चों को देखने को मिलती रहें, तो कोई नुकसान नहीं है |
सवाल : कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो आलंकारिक पैटर्न बनाना ही पसंद करते हैं | क्या उन्हें ऐसा करने देना चाहिए ?
जवाब : पैटर्न ही केवल बनाते रहें, यह ठीक नहीं है | उन्हें चित्र बनाने के लिए भी उत्साहित करना चाहिए | यूं ऐसे कुछ अपवाद हो सकते हैं, जबकि बच्चा हमेशा नए-नए पैटर्न बनाने वाला हो | ऐसी हालत में उसी प्रवृत्ति का विकास करना अच्छा होगा |
सवाल : किस उम्र तक बच्चों को अपने ही मन से चित्र बनाने देना चाहिए ?
जवाब : इसका कोई नियम नहीं बनाया जा सकता | कुछ बच्चों के लिए तो बिना सुझाव के काम कर पाना कभी भी संभव नहीं होता और उन्हें हमेशा ही सलाह की जरूरत होती है | लेकिन कई बच्चे ऐसे भी होते हैं, जो अपनी मर्जी से काम करते-करते आगे बढ़ जाते हैं |
Saturday, September 12, 2009
अपने आर्ट टीचर रहे जगन सिंह सैनी के चित्रों की प्रदर्शनी को भारती शर्मा का देखने आना उर्फ़ स्मृतियों में लौटना
आईफैक्स कला दीर्घा आज उस समय एक अनोखी घटना की गवाह बनी, जब भारती शर्मा करीब अड़तीस-उन्तालिस वर्ष पूर्व कानपुर के राजकीय आर्डनेंस फैक्ट्री इंटर कालेज में अपने आर्ट टीचर रहे जगन सिंह सैनी के चित्रों की प्रदर्शनी देखने पंचकुला से सीधे यहाँ पहुँची |
1971 में हाई स्कूल पास करने तक, एक छात्र के रूप में भारती की कला गतिविधियाँ जगन सिंह सैनी की देखरेख में ही परवान चढ़ी थीं | एक छात्र के रूप में भारती काफी होशियार थीं और अपनी प्रतिभा के भरोसे पांचवीं कक्षा से ही स्कालरशिप प्राप्त कर रहीं थीं तथा हाई स्कूल में उन्होंने नेशनल स्कालरशिप के लिए भी क्वालीफाई किया | पढ़ाई में होशियार बच्चे आमतौर पर कला आदि में दिलचस्पी नहीं लेते, लेकिन भारती की ड्राइंग में भी खासी रूचि थी और इसीलिए वह स्कूल के आर्ट टीचर जगन सिंह सैनी की पसंद के बच्चों में भी जानी/पहचानी जाती थीं | हाई स्कूल पास करने के बाद चूंकि आर्ट उनकी पढ़ाई का विषय नहीं रह गया था, और फिर पिता के रिटायर होने के कारण उन्होंने कानपुर भी छोड़ दिया था; लिहाजा भारती का जगन सिंह सैनी से फिर कोई संपर्क नहीं रह गया था |
फिजिक्स में एमएससी करने, एमटेक अधूरा छोड़ने और शादी के बाद नाइजीरिया में करीब पंद्रह वर्ष रहने के बाद पंचकुला में आ बसने तक भारती की आर्ट में दिलचस्पी लगातार बनी ही रही | चंडीगढ़ के आर्मी पब्लिक स्कूल में फिजिक्स व मैथ्स पढ़ाते हुए भी भारती ने आर्ट में अपने आप को लगातार सक्रिय बनाए रखा और एक चित्रकार के रूप में अपनी पहचान बनाई | एक चित्रकार के रूप में भारती शर्मा ने जो कुछ भी किया और अपना जो मुकाम बनाया, उसके प्रेरणाश्रोत के रूप में उन्होंने हमेशा जगन सिंह सैनी को याद तो किया लेकिन जगन सिंह सैनी का कोई अतापता उन्हें नहीं मिल सका |
जगन सिंह सैनी कानपुर के राजकीय आर्डनेंस फैक्ट्री इंटर कालेज से रिटायर होने के बाद सहारनपुर आ बसे | वह यहीं के रहने वाले हैं | सहारनपुर के गाँव मुबारकपुर में उनका जन्म हुआ था | आर्ट टीचर के रूप में जगन सिंह सैनी ने बच्चों को प्रेरित और प्रशिक्षित तो किया ही, एक कलाकार के रूप में वह खुद भी लगातार सक्रिय रहे| रिटायर होने के बाद उन्होंने लखनऊ की राज्य ललित कला अकादमी, मुज़फ्फरनगर के डीएवी कालेज, दिल्ली की ललित कला अकादमी व आईफैक्स की दीर्घाओं में अपने चित्रों की एकल प्रदर्शनियां कीं |
आईफैक्स में दो वर्ष पहले हुई जगन सिंह सैनी के चित्रों की प्रदर्शनी के बाद भारती शर्मा को उनके बारे में जानकारी मिली | उसके बाद से भारती लगातार जगन सिंह सैनी से फोन पर संपर्क में रहीं | 8 सितंबर से आईफैक्स में शुरू हुई जगन सिंह सैनी की प्रदर्शनी का निमंत्रण जाहिर है कि उन्हें मिला ही | इस प्रदर्शनी में आने को लेकर भारती इतनी उत्सुक व उत्साहित थीं कि इस अवसर को उन्होंने एक उत्सव की तरह मनाया और अपनी दोनों बहनों को भी इस बारे में बताया | इस बताने में उनके बीच अपने स्कूली दिनों की यादें ताजा हुईं | जगन सिंह सैनी के चित्रों की प्रदर्शनी देखने आना, भारती शर्मा के लिए - और उनकी बहनों के लिए भी - अपनी स्मृतियों में लौटने जैसा मामला रहा |
किसी भी उत्सव में हम वास्तव में अपनी स्मृतियों को ही तो जीते हैं | स्मृति ही वह गतिशील सर्जनात्मक तत्त्व है जो काल, इतिहास, भाषा, साहित्य और कला के नए परिदृश्य रचती चलती है | आधुनिक जीवन की प्रवृत्तियां स्मृति के परिदृश्य को लगातार छोटा करती जा रही हैं | जिस वर्तमान में हम जीते हैं - जिस में हमें जीने दिया जाता है, जीने को बाध्य किया जाता है - उस की व्यस्तता लगातार इतनी बढ़ती जाती है कि हमें न स्मरण के लिए अधिक समय मिलता है और न हमारी चेतना ही उधर प्रवृत्त हो पाती है | लेकिन फिर भी स्मृतियाँ अक्सर हमारे दिलो-दिमाग पर दस्तक देती रहती हैं और कभी-कभी हम उन्हें उत्सव के रूप में जीते भी हैं |
अपने आर्ट टीचर रहे जगन सिंह सैनी के चित्रों की प्रदर्शनी को देखने आने को भारती शर्मा ने जिस उत्साह और उत्सवी भावना के साथ अंजाम दिया, उसे देख कर एक गतिशील सर्जनात्मक तत्त्व के रूप में स्मृति की सामर्थ्य को मैंने एक बार फिर पहचाना | इसीलिए आईफैक्स कला दीर्घा में जगन सिंह सैनी के चित्रों की प्रदर्शनी में भारती शर्मा की उपस्थिति को मैंने एक अनोखी घटना के रूप में देखा/पहचाना है |
1971 में हाई स्कूल पास करने तक, एक छात्र के रूप में भारती की कला गतिविधियाँ जगन सिंह सैनी की देखरेख में ही परवान चढ़ी थीं | एक छात्र के रूप में भारती काफी होशियार थीं और अपनी प्रतिभा के भरोसे पांचवीं कक्षा से ही स्कालरशिप प्राप्त कर रहीं थीं तथा हाई स्कूल में उन्होंने नेशनल स्कालरशिप के लिए भी क्वालीफाई किया | पढ़ाई में होशियार बच्चे आमतौर पर कला आदि में दिलचस्पी नहीं लेते, लेकिन भारती की ड्राइंग में भी खासी रूचि थी और इसीलिए वह स्कूल के आर्ट टीचर जगन सिंह सैनी की पसंद के बच्चों में भी जानी/पहचानी जाती थीं | हाई स्कूल पास करने के बाद चूंकि आर्ट उनकी पढ़ाई का विषय नहीं रह गया था, और फिर पिता के रिटायर होने के कारण उन्होंने कानपुर भी छोड़ दिया था; लिहाजा भारती का जगन सिंह सैनी से फिर कोई संपर्क नहीं रह गया था |
फिजिक्स में एमएससी करने, एमटेक अधूरा छोड़ने और शादी के बाद नाइजीरिया में करीब पंद्रह वर्ष रहने के बाद पंचकुला में आ बसने तक भारती की आर्ट में दिलचस्पी लगातार बनी ही रही | चंडीगढ़ के आर्मी पब्लिक स्कूल में फिजिक्स व मैथ्स पढ़ाते हुए भी भारती ने आर्ट में अपने आप को लगातार सक्रिय बनाए रखा और एक चित्रकार के रूप में अपनी पहचान बनाई | एक चित्रकार के रूप में भारती शर्मा ने जो कुछ भी किया और अपना जो मुकाम बनाया, उसके प्रेरणाश्रोत के रूप में उन्होंने हमेशा जगन सिंह सैनी को याद तो किया लेकिन जगन सिंह सैनी का कोई अतापता उन्हें नहीं मिल सका |
जगन सिंह सैनी कानपुर के राजकीय आर्डनेंस फैक्ट्री इंटर कालेज से रिटायर होने के बाद सहारनपुर आ बसे | वह यहीं के रहने वाले हैं | सहारनपुर के गाँव मुबारकपुर में उनका जन्म हुआ था | आर्ट टीचर के रूप में जगन सिंह सैनी ने बच्चों को प्रेरित और प्रशिक्षित तो किया ही, एक कलाकार के रूप में वह खुद भी लगातार सक्रिय रहे| रिटायर होने के बाद उन्होंने लखनऊ की राज्य ललित कला अकादमी, मुज़फ्फरनगर के डीएवी कालेज, दिल्ली की ललित कला अकादमी व आईफैक्स की दीर्घाओं में अपने चित्रों की एकल प्रदर्शनियां कीं |
आईफैक्स में दो वर्ष पहले हुई जगन सिंह सैनी के चित्रों की प्रदर्शनी के बाद भारती शर्मा को उनके बारे में जानकारी मिली | उसके बाद से भारती लगातार जगन सिंह सैनी से फोन पर संपर्क में रहीं | 8 सितंबर से आईफैक्स में शुरू हुई जगन सिंह सैनी की प्रदर्शनी का निमंत्रण जाहिर है कि उन्हें मिला ही | इस प्रदर्शनी में आने को लेकर भारती इतनी उत्सुक व उत्साहित थीं कि इस अवसर को उन्होंने एक उत्सव की तरह मनाया और अपनी दोनों बहनों को भी इस बारे में बताया | इस बताने में उनके बीच अपने स्कूली दिनों की यादें ताजा हुईं | जगन सिंह सैनी के चित्रों की प्रदर्शनी देखने आना, भारती शर्मा के लिए - और उनकी बहनों के लिए भी - अपनी स्मृतियों में लौटने जैसा मामला रहा |
किसी भी उत्सव में हम वास्तव में अपनी स्मृतियों को ही तो जीते हैं | स्मृति ही वह गतिशील सर्जनात्मक तत्त्व है जो काल, इतिहास, भाषा, साहित्य और कला के नए परिदृश्य रचती चलती है | आधुनिक जीवन की प्रवृत्तियां स्मृति के परिदृश्य को लगातार छोटा करती जा रही हैं | जिस वर्तमान में हम जीते हैं - जिस में हमें जीने दिया जाता है, जीने को बाध्य किया जाता है - उस की व्यस्तता लगातार इतनी बढ़ती जाती है कि हमें न स्मरण के लिए अधिक समय मिलता है और न हमारी चेतना ही उधर प्रवृत्त हो पाती है | लेकिन फिर भी स्मृतियाँ अक्सर हमारे दिलो-दिमाग पर दस्तक देती रहती हैं और कभी-कभी हम उन्हें उत्सव के रूप में जीते भी हैं |
अपने आर्ट टीचर रहे जगन सिंह सैनी के चित्रों की प्रदर्शनी को देखने आने को भारती शर्मा ने जिस उत्साह और उत्सवी भावना के साथ अंजाम दिया, उसे देख कर एक गतिशील सर्जनात्मक तत्त्व के रूप में स्मृति की सामर्थ्य को मैंने एक बार फिर पहचाना | इसीलिए आईफैक्स कला दीर्घा में जगन सिंह सैनी के चित्रों की प्रदर्शनी में भारती शर्मा की उपस्थिति को मैंने एक अनोखी घटना के रूप में देखा/पहचाना है |
Thursday, September 10, 2009
रेनुका सोंधी का काम बुर्लेंड गैलरीज के माध्यम से पहली बार अंतर्राष्ट्रीय कला प्रेक्षकों के सामने होगा
रेनुका सोंधी की तीन पेंटिंग्स को बुर्लेंड गैलरीज ने 16 से 18 सितंबर के बीच लंदन में आयोजित हो रही अपनी एक प्रमुख प्रदर्शनी के लिये चुना है | एक चित्रकार के रूप में रेनुका सोंधी के लिये इस वर्ष की यह दूसरी प्रमुख उपलब्धि है | इसी वर्ष के शुरू में ऑल इंडिया फाइन आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स सोसायटी ने अपनी वार्षिक प्रदर्शनी में उनके एक काम को चुना था |
अपनी कला के परिचितों व प्रशंसकों को चकित करते हुए रेनुका ने ऑल इंडिया फाइन आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स सोसायटी की वार्षिक प्रदर्शनी के लिये अपना बनाया एक स्कल्पचर दिया था | केनवस पर आयल व एक्रिलिक में काम करती रहीं रेनुका के लिये स्कल्पचर करना एक नया अनुभव था | इसके बावजूद उनके स्कल्पचर को ऑल इंडिया फाइन आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स सोसायटी की वार्षिक प्रदर्शनी के लिये काम का चुनाव करने वालों ने पसंद किया | 142 स्कल्पचर प्रदर्शनी के लिये आये, जिनमें से 36 को प्रदर्शित करने के लिये चुना गया | इन 36 में एक रेनुका का फाइबर में बनाया गया 'डिफरेंट फेज़' शीर्षक स्कल्पचर भी था|
रेनुका सोंधी ने अपनी निरंतर सक्रियता से कला जगत में अपने काम को प्रतिष्ठित किया है | पिछले वर्ष उन्होंने हिमाद्री भट्टाचार्य व अनीता कृषाली के साथ एक समूह प्रदर्शनी की थी | उसके पहले वर्ष त्रिवेणी कला दीर्घा में तथा उससे भी पहले वर्ष पूर्वा संस्कृति केंद्र में रेनुका सोंधी ने अपने चित्रों की एकल प्रदर्शनी की थी | दिल्ली और दिल्ली से बाहर आयोजित हुईं कुछेक समूह प्रदर्शनियों में भी उनका काम प्रदर्शित हुआ है; तथा एक चित्रकार के रूप में विभिन्न संस्थाओं की तरफ से वह पुरस्कृत व सम्मानित हो चुकी हैं | बुर्लेंड गैलरीज की लंदन में होने वाली प्रदर्शनी में उनके चित्रों की मौजूदगी एक चित्रकार के रूप में उनकी पहुंच व पहचान को और व्यापक बनाने का काम ही करेगी |
बुर्लेंड गैलरीज की स्थापना ब्रिटेन में रह रहे नवीन साहनी ने ब्रिटिश नागरिक फिलिप पवसन के साथ मिलकर की है, जिसका उद्देश्य भारत के प्रतिभाशाली युवा चित्रकारों के काम को यूरोपियो देशों के साथ-साथ अमेरिका तथा मध्य एशियाई देशों में प्रदर्शित करना तथा बेचना है | इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये बुर्लेंड गैलरीज ने ब्रिटेन के कुछेक बिजनेस समूहों के साथ व्यापारिक किस्म के समझौते किये हुए हैं | बुर्लेंड गैलरीज भारत में प्रतिभाशाली युवा चित्रकारों की पहचान करती है, और उनके काम को विदेशी कला प्रेक्षकों व खरीदारों के समक्ष प्रस्तुत करती है |
बुर्लेंड गैलरीज के जरिये भारत के कई युवा चित्रकारों ने कला की अंतर्राष्ट्रीय दुनिया में नाम और दाम दोनों कमाएं हैं | कई युवा चित्रकार हैं जिन्होंने बुर्लेंड गैलरीज के जरिये पहली बार अपने काम को प्रदर्शित कर पाया है |
रेनुका सोंधी का काम बुर्लेंड गैलरीज के माध्यम से पहली बार अंतर्राष्ट्रीय कला प्रेक्षकों के सामने होगा | बुर्लेंड गैलरीज की 16 से 18 सितंबर के बीच लंदन में आयोजित हो रही प्रदर्शनी में रेनुका सोंधी की जो तीन पेंटिंग्स लगेंगी उन्हें आप यहाँ भी देख सकते हैं |
The balancing 2008
12"x12"
acrylic & oil
The surprise 2008
12"x12"
acrylic & oil
The vision 2008
12"x12"
acrylic & oil
अपनी कला के परिचितों व प्रशंसकों को चकित करते हुए रेनुका ने ऑल इंडिया फाइन आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स सोसायटी की वार्षिक प्रदर्शनी के लिये अपना बनाया एक स्कल्पचर दिया था | केनवस पर आयल व एक्रिलिक में काम करती रहीं रेनुका के लिये स्कल्पचर करना एक नया अनुभव था | इसके बावजूद उनके स्कल्पचर को ऑल इंडिया फाइन आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स सोसायटी की वार्षिक प्रदर्शनी के लिये काम का चुनाव करने वालों ने पसंद किया | 142 स्कल्पचर प्रदर्शनी के लिये आये, जिनमें से 36 को प्रदर्शित करने के लिये चुना गया | इन 36 में एक रेनुका का फाइबर में बनाया गया 'डिफरेंट फेज़' शीर्षक स्कल्पचर भी था|
रेनुका सोंधी ने अपनी निरंतर सक्रियता से कला जगत में अपने काम को प्रतिष्ठित किया है | पिछले वर्ष उन्होंने हिमाद्री भट्टाचार्य व अनीता कृषाली के साथ एक समूह प्रदर्शनी की थी | उसके पहले वर्ष त्रिवेणी कला दीर्घा में तथा उससे भी पहले वर्ष पूर्वा संस्कृति केंद्र में रेनुका सोंधी ने अपने चित्रों की एकल प्रदर्शनी की थी | दिल्ली और दिल्ली से बाहर आयोजित हुईं कुछेक समूह प्रदर्शनियों में भी उनका काम प्रदर्शित हुआ है; तथा एक चित्रकार के रूप में विभिन्न संस्थाओं की तरफ से वह पुरस्कृत व सम्मानित हो चुकी हैं | बुर्लेंड गैलरीज की लंदन में होने वाली प्रदर्शनी में उनके चित्रों की मौजूदगी एक चित्रकार के रूप में उनकी पहुंच व पहचान को और व्यापक बनाने का काम ही करेगी |
बुर्लेंड गैलरीज की स्थापना ब्रिटेन में रह रहे नवीन साहनी ने ब्रिटिश नागरिक फिलिप पवसन के साथ मिलकर की है, जिसका उद्देश्य भारत के प्रतिभाशाली युवा चित्रकारों के काम को यूरोपियो देशों के साथ-साथ अमेरिका तथा मध्य एशियाई देशों में प्रदर्शित करना तथा बेचना है | इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये बुर्लेंड गैलरीज ने ब्रिटेन के कुछेक बिजनेस समूहों के साथ व्यापारिक किस्म के समझौते किये हुए हैं | बुर्लेंड गैलरीज भारत में प्रतिभाशाली युवा चित्रकारों की पहचान करती है, और उनके काम को विदेशी कला प्रेक्षकों व खरीदारों के समक्ष प्रस्तुत करती है |
बुर्लेंड गैलरीज के जरिये भारत के कई युवा चित्रकारों ने कला की अंतर्राष्ट्रीय दुनिया में नाम और दाम दोनों कमाएं हैं | कई युवा चित्रकार हैं जिन्होंने बुर्लेंड गैलरीज के जरिये पहली बार अपने काम को प्रदर्शित कर पाया है |
रेनुका सोंधी का काम बुर्लेंड गैलरीज के माध्यम से पहली बार अंतर्राष्ट्रीय कला प्रेक्षकों के सामने होगा | बुर्लेंड गैलरीज की 16 से 18 सितंबर के बीच लंदन में आयोजित हो रही प्रदर्शनी में रेनुका सोंधी की जो तीन पेंटिंग्स लगेंगी उन्हें आप यहाँ भी देख सकते हैं |
The balancing 2008
12"x12"
acrylic & oil
The surprise 2008
12"x12"
acrylic & oil
The vision 2008
12"x12"
acrylic & oil
Wednesday, September 2, 2009
आनंद नारायण अपनी छठी एकल प्रदर्शनी देखने के लिए बुला रहे हैं
आनंद नारायण के लैंडस्केप की प्रदर्शनी नई दिल्ली की त्रिवेणी कला दीर्घा में 9 सितम्बर से शुरू हो रही है | इस प्रदर्शिनी में प्रस्तुत चित्रों को 18 सितम्बर तक देखा जा सकेगा | आनंद नारायण के चित्रों की यह छठी एकल प्रदर्शनी है | ऐसे समय में जबकी लैंडस्केप कला को भुला-सा दिया गया है, आनंद नारायण की लैंडस्केप पर काम करते रहने की जिद चकित करती है | उल्लेखनीय है कि आधुनिक कला आंदोलन की शुरूआत या फिर कहें कि पचास व साठ के दशक तक भी कई प्रमुख कलाकारों की दिलचस्पी होने से, लैंडस्केप का कला-जगत में खासा जोर था | बाद के वर्षों में उक्त जोर लेकिन कमजोर होता गया | मौजूदा कला परिदृश्य की ओर देखें तो हम पायेंगे कि बहुत कम चित्रकार ही हैं जो लैंडस्केप को सार्थक अभिव्यक्ति का माध्यम मानते हैं | इसके बहुत से कारण होंगे; लेकिन यह कहने का मन जरूर होता है कि एक समय खासे प्रभावी रहे इस चित्र-रूप की कुछ अनदेखी सी ही हो रही है | गौर करने की बात यह है कि बाज़ार के लिए तो लैंडस्केप आज भी खूब बन रहे हैं, लेकिन मैं यहाँ उन लैंडस्केप की बात कर रहा हूँ जिनमें कमोबेश एक रचनात्मकता भी रहती है, और जिनके स्त्रोत केवल किताबों- केलेंडरों में नहीं होते | इस लिहाज से लैंडस्केप के प्रति आनंद नारायण की लगातार बनी रहने वाली प्रतिबद्दता आश्वस्त करती है | आनंद नारायण के लैंडस्केप देखते हुए यह तथ्य एक रोमांच से भर देता है कि उनकी कला यात्रा का आरंभ उत्तर प्रदेश के एक अत्यंत पीछे रह गए जिले बाराबंकी से हुआ था | उनके काम को देख कर लगता है कि लखनऊ और दिल्ली ने उनकी कला को परिष्कृत भले ही किया हो, लेकिन एक चित्रकार के रूप में 'खाद-पानी' वह अभी भी वहीं से जुटाते हैं | लखनऊ के कॉलिज ऑफ आर्ट से बीएफए करने के बाद आनंद दिल्ली आ गए और यहाँ के जामिया मिलिया इस्लामिया से उन्होंने एमएफए किया | उत्तर प्रदेश की राज्य ललित कला अकादमी ने 1995 में अपनी बीसवीं वार्षिक प्रदर्शनी में जब दस कलाकारों को पुरस्कारों के लिए चुना, तो उन दस कलाकारों में आनंद नारायण का नाम भी था | आनंद नारायण कैमलिन आर्ट फाउंडेशन से भी पुरस्कृत हो चुके हैं तथा राष्ट्रीय ललित कला अकादमी से उन्होंने रिसर्च ग्रांट भी प्राप्त की है | लैंडस्केप में आनंद का मुख्य रुझान रंग-संपुजन का है : किन्हीं लैंडस्केप में रंगों और उन रंगों के प्रकाश को जैसे वह चुन लेते हैं और फिर उसे अपनी तरह से एक आकार देते हैं | भरी हुई धूप की तरह कुछेक लैंडस्केप में खुरचनें हैं जो मानो धारियों या लकीरों की एक पर्याय सरीखी हैं | लेकिन यह इनका एक चाक्षुक विवरण ही हुआ | दरअसल, आनंद के रंग संपुजनों, खुरचनों और रंग-प्रकाश में कुछ ऐंद्रिक-मानसिक व्याप्तियाँ भी हैं जो उन्हें मात्र अलंकरणयुक्त आकर्षक लैंडस्केपों से कुछ ऊपर उठा देती है | वैसे अलंकरण का खतरा उनके यहाँ से बिल्कुल समाप्त नहीं हो गया और एक अतिरिक्त मधुरता भी दीख जा सकती है - लेकिन तब जो चीज उन्हें लैंडस्केप बनाती है - वह यही कि यह अलंकरणप्रियता और मधुरता खोज रहित नहीं है | आनंद ने किन्हीं मुहावरों के भीतर अपने को बंद नहीं कर लिया है और इसी से यह उम्मीद भी बंधती है कि वह लैंडस्केप के रूप प्रकार को न सही बेहद खोजी दृष्टि से लेकिन एक टटोलती टोहती दृष्टी से तो देख ही रहे हैं | यह खासे संतोष की ही बात है कि इसीलिये आनंद प्रदर्शनी-दर-प्रदर्शनी अपने को दोहराते हुए नहीं लगते और न ही इतना रुके हुए कि अगली प्रदर्शनी के लिए उत्सुकता ही न रहे | उम्मीद की जानी चाहिए कि आनंद नारायण की अगली प्रदर्शनी उक्त संतोष व विश्वास को बनाये रखेगी | आनंद नारायण के चार नए लैंडस्केप के चित्र आप यहाँ भी देख सकते है | किंतु इन्हें कला दीर्धा में देखेंगे तो बात ही कुछ और होगी |
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