Wednesday, September 2, 2009

आनंद नारायण अपनी छठी एकल प्रदर्शनी देखने के लिए बुला रहे हैं

आनंद नारायण के लैंडस्केप की प्रदर्शनी नई दिल्ली की त्रिवेणी कला दीर्घा में 9 सितम्बर से शुरू हो रही है | इस प्रदर्शिनी में प्रस्तुत चित्रों को 18 सितम्बर तक देखा जा सकेगा | आनंद नारायण के चित्रों की यह छठी एकल प्रदर्शनी है | ऐसे समय में जबकी लैंडस्केप कला को भुला-सा दिया गया है, आनंद नारायण की लैंडस्केप पर काम करते रहने की जिद चकित करती है | उल्लेखनीय है कि आधुनिक कला आंदोलन की शुरूआत या फिर कहें कि पचास व साठ के दशक तक भी कई प्रमुख कलाकारों की दिलचस्पी होने से, लैंडस्केप का कला-जगत में खासा जोर था | बाद के वर्षों में उक्त जोर लेकिन कमजोर होता गया | मौजूदा ला परिदृश्य की ओर देखें तो हम पायेंगे कि बहुत कम चित्रकार ही हैं जो लैंडस्केप को सार्थक अभिव्यक्ति का माध्यम मानते हैं | इसके बहुत से कारण होंगे; लेकिन यह कहने का मन जरूर होता है कि एक समय खासे प्रभावी रहे इस चित्र-रूप की कुछ अनदेखी सी ही हो रही है | गौर करने की बात यह है कि बाज़ार लिए तो लैंडस्केप आज भी खूब बन रहे हैं, लेकिन मैं यहाँ उन लैंडस्केप की बात कर रहा हूँ जिनमें कमोबेश एक रचनात्मकता भी रहती है, और जिनके स्त्रोत केवल किताबों- केलेंडरों में नहीं होते | इस लिहाज से लैंडस्केप के प्रति आनंद नारायण की लगातार बनी रहने वाली प्रतिबद्दता आश्वस्त करती है | आनंद नारायण के लैंडस्केप देखते हुए यह तथ्य एक रोमांच से भर देता है कि उनकी कला यात्रा का आरंभ उत्तर प्रदेश के एक अत्यंत पीछे रह गए जिले बाराबंकी से हुआ था | उनके काम को देख कर लगता है कि लखनऊ और दिल्ली ने उनकी कला को परिष्कृत भले ही किया हो, लेकिन एक चित्रकार के रूप में 'खाद-पानी' वह अभी भी वहीं से जुटाते हैं | लखनऊ के कॉलिज ऑफ आर्ट से बीएफए करने के बाद आनंद दिल्ली आ गए और यहाँ के जामिया मिलिया इस्लामिया से उन्होंने एमएफए किया | उत्तर प्रदेश की राज्य ललित कला अकादमी ने 1995 में पनी बीसवीं वार्षिक प्रदर्शनी में जब दस कलाकारों को पुरस्कारों के लिए चुना, तो उन दस कलाकारों में आनंद नारायण का नाम भी था | आनंद नारायण कैमलिन आर्ट फाउंडेशन से भी पुरस्कृत हो चुके हैं तथा राष्ट्रीय ललित कला अकादमी से उन्होंने रिसर्च ग्रांट भी प्राप्त की है | लैंडस्केप में आनंद का मुख्य रुझान रंग-संपुजन का है : किन्हीं लैंडस्केप में रंगों और उन रंगों के प्रकाश को जैसे वह चुन लेते हैं और फिर उसे अपनी तरह से एक आकार देते हैं | भरी हुई धूप की तरह कुछेक लैंडस्केप में खुरचनें हैं जो मानो धारियों या लकीरों की एक पर्याय सरीखी हैं | लेकिन यह इनका एक चाक्षुक विवरण ही हुआ | दरअसल, आनंद के रंग संपुजनों, खुरचनों और रंग-प्रकाश में कुछ ऐंद्रिक-मानसिक व्याप्तियाँ भी हैं जो उन्हें मात्र अलंकरणयुक्त आकर्षक लैंडस्केपों से कुछ ऊपर उठा देती है | वैसे अलंकरण का खतरा उनके यहाँ से िल्कुल समाप्त नहीं हो गया और एक अतिरिक्त मधुरता भी दीख जा सकती है - लेकिन तब जो चीज उन्हें लैंडस्केप बनाती है - वह यही कि यह अलंकरणप्रियता और मधुरता खोज रहित नहीं है | आनंद ने किन्हीं मुहावरों के भीतर पने को बंद नहीं कर लिया है और इसी से यह उम्मीद भी बंधती है कि वह लैंडस्केप के रूप प्रकार को न सही बेहद खोजी दृष्टि से लेकिन एक टटोलती टोहती दृष्टी से तो देख ही रहे हैं | यह खासे संतोष की ही बात है कि इसीलिये आनंद प्रदर्शनी-दर-प्रदर्शनी अपने को दोहराते हुए नहीं लगते और न ही इतना रुके हुए कि अगली प्रदर्शनी के लिए उत्सुकता ही न रहे | उम्मीद की जानी चाहिए कि आनंद नारायण की अगली प्रदर्शनी उक्त संतोष व िश्वास को बनाये रखेगी | आनंद नारायण के चार नए लैंडस्केप चित्र आप यहाँ भी देख सकते है | किंतु इन्हें कला दीर्धा में देखेंगे तो बात ही कुछ और होगी |


























































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