Saturday, September 12, 2009

अपने आर्ट टीचर रहे जगन सिंह सैनी के चित्रों की प्रदर्शनी को भारती शर्मा का देखने आना उर्फ़ स्मृतियों में लौटना

आईफैक्स कला दीर्घा आज उस समय एक अनोखी घटना की गवाह बनी, जब भारती शर्मा करीब अड़तीस-उन्तालिस वर्ष पूर्व कानपुर के राजकीय आर्डनेंस फैक्ट्री इंटर कालेज में अपने आर्ट टीचर रहे जगन सिंह सैनी के चित्रों की प्रदर्शनी देखने पंचकुला से सीधे यहाँ पहुँची |


1971 में हाई स्कूल पास करने तक, एक छात्र के रूप में भारती की कला गतिविधियाँ जगन सिंह सैनी की देखरेख में ही परवान चढ़ी थीं | एक छात्र के रूप में भारती काफी होशियार थीं और अपनी प्रतिभा के भरोसे पांचवीं कक्षा से ही स्कालरशिप प्राप्त कर रहीं थीं तथा हाई स्कूल में उन्होंने नेशनल स्कालरशिप के लिए भी क्वालीफाई किया | पढ़ाई में होशियार बच्चे आमतौर पर कला आदि में दिलचस्पी नहीं लेते, लेकिन भारती की ड्राइंग में भी खासी रूचि थी और इसीलिए वह स्कूल के आर्ट टीचर जगन सिंह सैनी की पसंद के बच्चों में भी जानी/पहचानी जाती थीं | हाई स्कूल पास करने के बाद चूंकि आर्ट उनकी पढ़ाई का विषय नहीं रह गया था, और फिर पिता के रिटायर होने के कारण उन्होंने कानपुर भी छोड़ दिया था; लिहाजा भारती का जगन सिंह सैनी से फिर कोई संपर्क नहीं रह गया था |

फिजिक्स में एमएससी करने, एमटेक अधूरा छोड़ने और शादी के बाद नाइजीरिया में करीब पंद्रह वर्ष रहने के बाद पंचकुला में आ बसने तक भारती की आर्ट में दिलचस्पी लगातार बनी ही रही | चंडीगढ़ के आर्मी पब्लिक स्कूल में फिजिक्स व मैथ्स पढ़ाते हुए भी भारती ने आर्ट में अपने आप को लगातार सक्रिय बनाए रखा और एक चित्रकार के रूप में अपनी पहचान बनाई | एक चित्रकार के रूप में भारती शर्मा ने जो कुछ भी किया और अपना जो मुकाम बनाया, उसके प्रेरणाश्रोत के रूप में उन्होंने हमेशा जगन सिंह सैनी को याद तो किया लेकिन जगन सिंह सैनी का कोई अतापता उन्हें नहीं मिल सका |

जगन सिंह सैनी कानपुर के राजकीय आर्डनेंस फैक्ट्री इंटर कालेज से रिटायर होने के बाद सहारनपुर आ बसे | वह यहीं के रहने वाले हैं | सहारनपुर के गाँव मुबारकपुर में उनका जन्म हुआ था | आर्ट टीचर के रूप में जगन सिंह सैनी ने बच्चों को प्रेरित और प्रशिक्षित तो किया ही, एक कलाकार के रूप में वह खुद भी लगातार सक्रिय रहे| रिटायर होने के बाद उन्होंने लखनऊ की राज्य ललित कला अकादमी, मुज़फ्फरनगर के डीएवी कालेज, दिल्ली की ललित कला अकादमी व आईफैक्स की दीर्घाओं में अपने चित्रों की एकल प्रदर्शनियां कीं |

आईफैक्स में दो वर्ष पहले हुई जगन सिंह सैनी के चित्रों की प्रदर्शनी के बाद भारती शर्मा को उनके बारे में जानकारी मिली | उसके बाद से भारती लगातार जगन सिंह सैनी से फोन पर संपर्क में रहीं | 8 सितंबर से आईफैक्स में शुरू हुई जगन सिंह सैनी की प्रदर्शनी का निमंत्रण जाहिर है कि उन्हें मिला ही | इस प्रदर्शनी में आने को लेकर भारती इतनी उत्सुक व उत्साहित थीं कि इस अवसर को उन्होंने एक उत्सव की तरह मनाया और अपनी दोनों बहनों को भी इस बारे में बताया | इस बताने में उनके बीच अपने स्कूली दिनों की यादें ताजा हुईं | जगन सिंह सैनी के चित्रों की प्रदर्शनी देखने आना, भारती शर्मा के लिए - और उनकी बहनों के लिए भी - अपनी स्मृतियों में लौटने जैसा मामला रहा |

किसी भी उत्सव में हम वास्तव में अपनी स्मृतियों को ही तो जीते हैं | स्मृति ही वह गतिशील सर्जनात्मक तत्त्व है जो काल, इतिहास, भाषा, साहित्य और कला के नए परिदृश्य रचती चलती है | आधुनिक जीवन की प्रवृत्तियां स्मृति के परिदृश्य को लगातार छोटा करती जा रही हैं | जिस वर्तमान में हम जीते हैं - जिस में हमें जीने दिया जाता है, जीने को बाध्य किया जाता है - उस की व्यस्तता लगातार इतनी बढ़ती जाती है कि हमें न स्मरण के लिए अधिक समय मिलता है और न हमारी चेतना ही उधर प्रवृत्त हो पाती है | लेकिन फिर भी स्मृतियाँ अक्सर हमारे दिलो-दिमाग पर दस्तक देती रहती हैं और कभी-कभी हम उन्हें उत्सव के रूप में जीते भी हैं |

अपने आर्ट टीचर रहे जगन सिंह सैनी के चित्रों की प्रदर्शनी को देखने आने को भारती शर्मा ने जिस उत्साह और उत्सवी भावना के साथ अंजाम दिया, उसे देख कर एक गतिशील सर्जनात्मक तत्त्व के रूप में स्मृति की सामर्थ्य को मैंने एक बार फिर पहचाना | इसीलिए आईफैक्स कला दीर्घा में जगन सिंह सैनी के चित्रों की प्रदर्शनी में भारती शर्मा की उपस्थिति को मैंने एक अनोखी घटना के रूप में देखा/पहचाना है |

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