
ऐसे समय में जबकि बाज़ार ने कला को लगभग कब्ज़ा लिया है, सुनियता की पेंटिंग्स की यह प्रदर्शनी सूक्ष्म सौन्दर्य और आत्मिक विचारों के नजरिये से उम्मीद की एक रोशनी की तरह लगी है | जीवन की भौतिक अवधारणा और जीवन की आध्यात्मिक अवधारणा के बीच मुख्य अंतर एक ही होता है : वह है विश्व-दृष्टि का अंतर | इस विश्व-दृष्टि ने कला पर भी व्यापक प्रभाव डाला है, और इसी प्रभाव के कारण कला को आत्म में स्थित आत्म की अभिव्यक्ति के रूप में देखने की प्रेरणा मिली है | यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि उन्नीसवीं सदी के उत्तर्रार्ध में रूसी चित्रकार वेसीली केंदिस्की ने आध्यात्म विषय पर म्यूनिख में एक किताब 'ऑन द स्प्रिचुअल इन आर्ट' प्रकाशित की थी, जो कला और आध्यात्म के संबंध के सन्दर्भ में बहुत महत्वपूर्ण
सिद्ध हुई थी | समकालीन कला में आध्यात्म ने एक विषय के रूप में लोगों का ध्यान उस बड़ी प्रदर्शनी के आरम्भ होने के साथ खींचना शुरू किया था जिसे लॉस एंजिल्स के काउंटी म्यूजियम ऑफ मॉडर्न आर्ट में 1986 - 87 और बाद में शिकागो व हयूग में प्रदर्शित किया गया था | उस अवसर पर 'द स्प्रिचुअल आर्ट एब्सट्रैक्ट पेंटिंग 1890 - 1987' शीर्षक से एक महत्वपूर्ण केटलॉग का प्रकाशन भी किया गया था |
आध्यात्म को जीवन की अंतर्यात्रा के मार्ग के रूप में देखा गया है, जिसे आत्म उन्नयन के लिए आवश्यक माना गया है | कला की सार्थकता चूंकि पूर्णता में होती है और यही 'पूर्णता' की जिज्ञासा या खोज या उसे छूने की कोशिश कला का आध्यात्म है | सुनियता की पेंटिंग्स में हम कला के इसी आध्यात्म को अभिव्यक्त होते देख सकते हैं | उनकी चित्रकृतियाँ अपनी कला भाषा और अंतर्वस्तु से पवित्रता का बोध कराती हैं - तो इसका कारण शायद यही होगा कि सुनियता ने इन्हें बहुत आध्यात्मिक भाव से चित्रित किया है | इसी से हम अनुमान लगा सकते हैं कि सुनियता की कला चेतना का आध्यात्मिकीकरण एक लम्बी प्रक्रिया का परिणाम है |