Wednesday, November 11, 2009

अक्षय आमेरिया का रचना-संसार एक नैतिक अन्वेषण है

अक्षय आमेरिया की कुछेक कलाकृतियों को महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका 'बहुवचन' के पृष्टों पर छपा देखा तो मुझे वर्षों पहले नई दिल्ली की त्रिवेणी कला दीर्घा में आयोजित हुई उनके चित्रों की एकल प्रदर्शनी की याद हो आई | अब जब मैंने खोज खबर ली तो पाया कि यह वर्ष 2000 की बात थी | अक्षय के चित्रों में प्रकट होने वाले काव्यात्मक बोध के कारण उनके चित्रों की जो छाप मेरे मन पर पड़ी थी, मैंने पाया कि वह जस की तस बनी हुई है | मुझे भी इसका पता हालाँकि तब चला जब मैं 'बहुवचन' के पृष्टों को पीछे की तरफ से पलट रहा था और उसमें छपे चित्रों को देखते ही मैंने जैसे अपने आप से कहा कि यह तो अक्षय आमेरिया के चित्र हैं, और फिर मैंने अपने आप से कही गई बात को सच पाया |

अक्षय आमेरिया के काम को तो मैंने देखा ही है, उन्हें काम करते हुए देखने का सौभाग्य भी मुझे प्राप्त हुआ है | आइफैक्स द्वारा आयोजित एक कैम्प में भाग लेने अक्षय दिल्ली आये थे, तब कुछ समय उनके साथ बिताने का अवसर मुझे मिला था | अक्षय बात भी करते जा रहे थे और कागज पर रचने का काम भी करते जा रहे थे | बात को और काम को एकसाथ साधने की उनकी क्षमता ने उस समय भी मुझे चकित किया था, और आज भी उस दृश्य को याद करता हूँ तो चकित होता हूँ | 'बहुवचन' में अक्षय की कलाकृतियों के जो चित्र छपे हैं वह पिछले दिनों मुंबई की जहाँगीर आर्ट गैलरी में 'इनरस्केप्स' शीर्षक से प्रदर्शित हुए हैं |

 अक्षय आमेरिया ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने अपने चित्रों के सामने पहली बार खड़े हो रहे दर्शकों को विस्मित और अपने चित्रों से पहले से परिचित दर्शकों को लगातार आश्वस्त बनाए रखा है, अपने 'विषयों' को लेकर भी और तकनीक को लेकर भी | अपने कौशल के साथ अक्षय हमें एक ऐसे स्पेस में ले जाते हैं, जहाँ प्रत्येक रेखा और बिंदु आविष्ट है, अपनी स्वयं की ज़िन्दगी प्राप्त कर रहा है - लगातार परिवर्तित होता हुआ | वैयक्तिक रूप से प्रत्येक चित्र एक स्वायत्त और स्वतंत्र कलाकृति के रूप में डटा रहता  है | यूं ही देखें तो अक्षय की कृतियाँ रूप और बुनावट में समृद्व दिखती हैं, और अगर ध्यान से निरीक्षण करें, तो वह एक ऐसी दुनिया निर्मित करती दिखती हैं जो दृश्य संदर्भों के विविध तत्त्वों को समाहित किए हुए हैं; तथापि कृति की सहजता और गतिकता के कारण, इस समूची प्रक्रिया में कुछ भी नाटकीय ढंग से आयोजित नहीं प्रतीत होता | अक्षय के चित्रों में एक भव्य संरचना और एक प्रतिध्वनित लय प्राप्त होती है जो एक निश्चित और दृढ़ तत्त्व लिए हुए होती है और वह अंतर्विरोध तथा आनंदप्रद तनाव का भाव पैदा करती है | इस अर्थ में अक्षय आमेरिया का रचना-संसार एक नैतिक अन्वेषण है - किन्हीं स्थूल अर्थों में नहीं बल्कि आध्यात्मिक और संवेदनात्मक अर्थों में - क्योंकि अन्ततः 'इनरस्केप' का बोध ही समस्त प्रकार की नैतिकता का बुनियादी स्त्रोत है | अखंडित, निर्वैयक्तिक और पारदर्शी चेतना के लिए कलाकार के संघर्ष को अक्षय के चित्रों में देखा / पहचाना जा सकता है |

अक्षय आमेरिया के कुछेक चित्रों को आप भी यहाँ देख सकते हैं | 


















9 comments:

  1. विजय शुक्लNovember 11, 2009 at 4:16 PM

    अक्षय आमेरिया के चित्र बहुत सरल और ग्राह्य नहीं हैं, पर फिर भी आकर्षित करते हैं; और सिर्फ आकर्षित ही नहीं करते, एक आत्मीयतापूर्ण संबंध बनाते हुए से भी लगते हैं | ऐसा लगता है कि एक चित्रकार के रूप में अक्षय चीजों को एक नई अद्भुत दृष्टि से देखते हैं और प्रयोगात्मक की एक रोमांचक भावना से प्रेरित होते हैं |

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  2. विवेक वर्माNovember 14, 2009 at 4:37 AM

    अक्षय के चित्रों को देख कर मैं सचमुच आश्चर्यचकित हूँ और उनपर प्रतिक्रिया देने के लिये मेरा शब्दज्ञान जैसे कम पड़ गया है; मुझे जैसे शब्द ही नहीं मिल रहे हैं | अक्षय के चित्र अनिर्वचनीय हैं, अवक्तव्यम हैं | उनके चित्रों को देख कर हम समझ सकते हैं कि उनमें खोज की बहुआयामी इच्छा है और अपनी इस इच्छा को पूरा करने का ज़ज्बा भी है |

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  3. Akshay ji has been always diffrent and superb....cannot find right adjectives....God Bless him always....

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  4. Akshay ke chitron ka sansaar atyant ghanibhoot hai....Ghanibhoot samvedano se jharti hui koi kalakriti....Muktibodh ki kisi kavita ki tarah....Akshay ke is sansaar ko bhedne ke liye prekshak ke paas vaisi hi pratibha aur drishti hona chahiye jaisi ki kalakar ke paas hai.

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  5. i had the opportunity to visit akshay ameria's work at bharat bhawan in Bhopal(MP). to me the work is the inner expressions being narrated on canvas with a unique theoritical arguments. it has got its own vocabulary, that too in non-verbal conjoining forms. it is a complete departure from reality in shape and form, and converginece into feel. i have seen him working, and it looks as if he is meditating with eyes open. span of canvas and the material in front of him. the examination of changes appearing across the surface and the connectivity with certain voids depicts variety of emotions, intentions and meaning in the inner-side of akshay ameria. akshay ameria's works are more than something to be seen. SOMETHING TO GET CONNECTED WITH. i am connected with him and his paintings. all good wishes to akshay for more of such visual experiences of inner expressions.

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  6. अक्षय भाई को बहोते नजदीक से जानता हु उनको काम करते हुए देखना एक ऋषि की तपस्या करते हुए देखने के समान है ! इसी तपस्या से निकले हुए काम को देखना एक सुखद अहेसास है ! मेरे और से ढेरो शुभकामना
    Nitin Gami

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  7. अक्षयजी के चित्रों को मै एक रहस्योद्घाटन मानता हूँ ना की एक नैतिक अन्वेषण..
    इनरस्केप का बोध हो जाने के बाद जब अन्वेषण ही नहीं बचता तो फिर नैतिकता-अनैतिकता का तो प्रश्न ही नहीं..
    अक्षयजी के माध्यम से ये रहस्य सदैव उद्घाटित होतें रहें, ऐसी इश्वर से प्रार्थना...

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  8. Akshayji(A SOURCE OF ENDLESS VISUALIZATION...) ke chitra toh akhir ''AKSHAY'' hai.............................................Rupesh patel(Interior designer & decorator)

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  9. darasl axayji ki kalkrti "adhyatm ki antaryatra"hai,jo unke vyktitv ka sthai bhav hai.unki painting mai manav ke man ka antardvnd mahsus kiya ja sakta hai.
    nivedita

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