
रुचि गोयल कौरा की पेंटिंग्स देखते हुए मुझे सहसा काफी पहले पढ़ी 'मेमोयर्स फ्रॉम द पास्ट' की पोस्ट्स याद आ गईं | पेंटिंग्स को देखते हुए उन पोस्ट्स को याद करने के क्रम में मुझे लगा कि हमारे भीतर कहीं जैसे एक त्रास मौजूद रहता है - इतिहास और समय के प्रति त्रास | क्या हम मनुष्य के भीतर बहने वाली सृजन धारा को इतिहास के दावों और दबावों से मुक्त रख सकते हैं - या यह सिर्फ एक आदर्शवादी लालसा और स्वप्न है | मैं जैसे अपने आप से मुठभेड़ करता हूँ और रुचि की पेंटिंग्स के स्रोतों को 'मेमोयर्स फ्रॉम द पास्ट' की पोस्टों में तलाशने की कोशिश करता हूँ और जल्दी ही अपनी इस कोशिश को निरर्थक पाता हूँ | अपनी कोशिश को इसलिए भी निरर्थक पाता हूँ क्योंकि मैं गौर करता हूँ कि खुद रुचि को ही 'मेमोयर्स फ्रॉम द पास्ट' में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई है और उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति के लिये अब पेंटिंग्स को चुन लिया है | अपनी सुविधा के लिये मैं मान लेता हूँ कि रुचि की पेंटिंग्स के स्रोत वहीं होंगे जहाँ 'मेमोयर्स फ्रॉम द पास्ट' के लिये उन्हें प्रेरणा मिली होगी | इस सोच विचार में लेकिन यह सवाल आ खड़ा हुआ कि एक कलाकृति का अर्थ कैसे निकलता है ? क्या वह विज्ञान या समाजशास्त्र या गणित के सूत्रों या सिद्वान्तों से जो अर्थ निकलता है - उससे अलग है ? किसी ने कहा है कि कोई भी कलाकृति या तो अपने में संपूर्ण रूप से अभेद्य होती है या हजारों अर्थ खोलती है | ऐसे में जब हम किसी कलाकृति को किसी एक खास अर्थ के साथ नत्थी कर देते हैं, उसी समय हम उसकी समग्र और संश्लिष्ट अर्थवत्ता को नष्ट कर देते हैं |
रुचि गोयल कौरा की पेंटिंग्स को देखते हुए पहले तो उनके ब्लॉग 'मेमोयर्स फ्रॉम द पास्ट' की याद आना और फिर उनकी पेंटिंग्स के स्रोतों को 'मेमोयर्स फ्रॉम द पास्ट' में खोजने की कोशिश को निरर्थक पाना/मानना - मैंने निष्कर्ष यह निकाला कि कोई कलाकृति किसी एक खास अनुभव या घटना या आइडियोलॉजी या दर्शन से उत्प्रेरित तो हो सकती है - किंतु एक कलाकृति की सत्ता में उसका अर्थ उस अनुभव या घटना या आइडियोलॉजी या दर्शन के सन्देश या डॉगमा से कहीं अधिक व्यापक और संश्लिस्ट होता है | महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि एक चित्र के ऊपरी बिम्ब या प्रतीक क्या हैं - वह कहीं से भी लिये जा सकते हैं - महत्त्वपूर्ण बात यह है कि कलाकृति की अर्थवत्ता उन संदर्भों का अतिक्रमण कर पाती है या नहीं - कर पाती है तो एक स्वायत्त इकाई बन जाती है और इस तरह समय के गुजरने के साथ यदि उसके प्रतीक और बिम्ब अप्रासंगिक या अर्थहीन भी हो जाते हैं - तो भी चित्र का कलात्मक अर्थ रत्ती-भर भी मलिन नहीं पड़ता | मुझे लगता है कि जिन दिनों रुचि 'मेमोयर्स फ्रॉम द पास्ट' में दिलचस्पी ले रहीं थीं उन दिनों भी वह दरअसल कलाकारी ही कर रहीं थीं | 'मेमोयर्स फ्रॉम द पास्ट' को उनकी एक कलाकृति के रूप में भी देखा जा सकता है | यहाँ यह भी याद किया जा सकता है कि उन्हीं दिनों उन्होंने बहुत ही प्रयोगधर्मी अपना एक विजीटिंग कार्ड भी बनाया था |
रुचि गोयल कौरा की कलाकृतियों में संवेदना स्वयं अपनी ऊर्जा से पुष्ट होती दिखती हैं | ऐक्य की तलाश ही उनमें जैसे एकमात्र लक्ष्य है | रुचि ने अपनी पेंटिंग्स को जो 'बुना हुआ' और म्युरल-सा रूप दिया है और विविधतापूर्ण रचनासामग्रियों का अपनी पेंटिंग्स में जो इस्तेमाल किया है - उसके चलते मनुष्य और भौतिक जगत की समानता, जड़ पदार्थों और भावनाओं का जो मेल तैयार होता नजर आता है वह सतह को मूल से जोड़ता-सा दिखता है | विविधतापूर्ण रचनासामग्रियों के इस्तेमाल से लगता है कि रुचि जैसे बाह्य यथार्थ को संपूर्ण रूप से ठुकरा कर अपने चित्रों का रेफरेंस अपने भीतर या अपने अहम् में खोजने का प्रयास कर रहीं हैं : क्योंकि अपने से अधिक इस दुनिया में और कौन-सी चीज, नैतिकता, मूल्य या यथार्थ विश्वसनीय और प्रामाणिक हो सकता है | अहम् का एक विस्तृत और समग्र रूप है - जिसे हम सेल्फ या आत्मन कह सकते हैं और यह भौतिक जगत का विरोधी या प्रतिद्वंदी तत्त्व नहीं है : यह अपने सत्य में उस परम का ही अणु है, जो सामाजिक यथार्थ से कहीं ज्यादा व्यापक और सार्वभौम है - जिसमें समूची प्रकृति, समूचा जीव-संसार, समय और इतिहास की धारणाएं शामिल हैं | क्या यह सिर्फ एक संयोग है कि रुचि ने इंडिया हैबिटेट सेंटर में आयोजित हुई अपनी पिछली एकल प्रदर्शनी को नाम ही 'अहम्' दिया था | रुचि का काम जीवन के शाश्वत संदर्भों की पड़ताल का मौका देता है और एक बार फिर इस बात को रेखांकित करता है कि कला में जब तक जीवन है, कोई प्रश्न पुराना नहीं पड़ता और कोई उत्तर अंतिम नहीं होता |
रुचि गोयल कौरा की पेंटिंग्स को 26 फरवरी से 3 मार्च के बीच गुड़गाँव की एपिसेंटर कला दीर्घा में 'बियोंड बाउनड्रीज' शीर्षक से शालिनी महाजन व संगीता मल्होत्रा द्वारा क्युरेट की गई समूह प्रदर्शनी में देखा जा सकता है | इस समूह प्रदर्शनी में उनके अलावा आशीष पाही, किशोर चावला, सायरा एच, संगीता मल्होत्रा, वंदना तनेजा, अर्चना भसीन, भावना रस्तोगी और सुरेखा सदाना के काम को भी देखा जा सकेगा |