राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय
(एनजीएमए - नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न ऑर्ट) में 16 जनवरी की शाम को समकालीन कला के भारतीय स्टार कलाकार सुबोध गुप्ता के काम की जो एकल प्रदर्शनी उद्घाटित हो रही है उसे एक युगांतकारी घटना के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
अंतर्राष्ट्रीय कला जगत में विशिष्ट पहचान रखने वाले, बिहार में पैदा हुए
और दिल्ली के नजदीक गुड़गाँव में रह रहे 49 वर्षीय सुबोध गुप्ता का यह
देश में अभी तक का सबसे बड़ा म्यूजियम शो होगा । कुछ लोग इसे सुबोध गुप्ता
के काम की पुनरावलोकन प्रदर्शनी के रूप में भी व्याख्यायित कर रहे हैं,
लेकिन खुद सुबोध गुप्ता इसे अपने कला-जीवन की मिड-कैरियर प्रदर्शनी के रूप
में देख रहे हैं । इस प्रदर्शनी में सुबोध गुप्ता के करीब 40 बहुत
महत्वपूर्ण समझे गए और चर्चित हुए काम प्रदर्शित होंगे । इस प्रदर्शनी में
सुबोध गुप्ता के 'बिहारी' शीर्षक सेल्फ-पोर्ट्रेट को भी देखा जा सकेगा,
जिसे वह कई बार भावुक अंदाज में अपने बहुत नजदीक बताते रहे हैं ।
राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय में आयोजित हो रही इस प्रदर्शनी को लेकर सुबोध गुप्ता खुद को एकसाथ रोमांचित और आकुल पा रहे हैं । उनका कहना है कि प्रत्येक कलाकार अपने जीवन में म्यूजियम शो का सपना देखता है; यह जान/देख कर स्वाभाविक रूप से मुझे अप्रतिम खुशी हो रही है कि मेरा सपना पूरा हो रहा है । प्रदर्शनी की तैयारियों का जायेजा लेते हुए उनका कहना रहा कि देश में और विदेशों में उन्होंने कई प्रदर्शनियाँ की हैं, लेकिन जिस तरह की उथल-पुथल से वह अभी गुजर रहे हैं, वैसा उन्होंने कभी महसूस नहीं किया है ।
बिहार के खगौल में वर्ष 1964 में एक साधारण परिवार में जन्मे सुबोध गुप्ता ने वर्ष 1983 से 1988 तक पटना के कॉलिज ऑफ ऑर्ट्स एण्ड क्राफ्ट्स में कला की पढ़ाई की । अपने कला जीवन की शुरुआत उन्होंने पेंटिंग से की, लेकिन जल्दी ही वह इंस्टॉलेशन और परफॉर्मेंस ऑर्ट की तरफ मुड़े । उन्होंने स्टील के बर्तनों को लेकर काम करना शुरू किया और फिर स्टील ही उनकी पहचान बन गया । एक कलाकार के रूप में अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि सुबोध यह मानते हैं कि आम दर्शक भी उनके काम में अपने आप को देखता/पहचानता है । वह याद करते हुए बताते हैं कि करीब पंद्रह-अठारह वर्ष पहले जब उन्होंने स्टील के बर्तनों को लेकर काम करना शुरू किया था तब देश में अधिकतर परिवारों में स्टील के बर्तन ही इस्तेमाल होते थे । हालाँकि स्टील के बर्तनों का प्रचलन अब कम हो गया है, लेकिन फिर भी अभी भी वह इस्तेमाल होते ही हैं । कई ऐसे मौके आये हैं जब उनके काम को देखते हुए कोई कोई बेसाख्ता कह उठता कि 'अरे यह तो मेरे घर की चम्मच जैसी ही चम्मच है ।' अपने काम के आगे खड़े होकर फोटो खिंचवाते लोगों को देख कर उन्हें वास्तविक खुशी मिलती है ।
सुबोध
गुप्ता का काम इस तरह एक आम दर्शक को भी 'कलाकार' हो सकने का अहसास
करवाता है । उनके काम को - काम में प्रयुक्त हुए बर्तनों को देखते हुए दर्शक
जब मन ही मन कुछेक अन्य छवियाँ उभार रहा होता है, किसी काम में कुछ
जोड़-घटा रहा होता है, तो उस समय वह भी एक प्रकार का कलाकार ही हो जाता है ।
जिसे हम किसी कलाकृति के आस्वाद का आनंद कहते हैं, तो वह आनंद दर्शक के
लिए एक कलाकार की रचना-प्रक्रिया जैसा ही आनंद तो होता है - ऐसा ही 'आनंद'
उठाने का मौका सुबोध गुप्ता का काम उपलब्ध करवाता है । यही चीज उनके काम को
खास बनाती है । राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय में आयोजित हो रही इस प्रदर्शनी को लेकर सुबोध गुप्ता खुद को एकसाथ रोमांचित और आकुल पा रहे हैं । उनका कहना है कि प्रत्येक कलाकार अपने जीवन में म्यूजियम शो का सपना देखता है; यह जान/देख कर स्वाभाविक रूप से मुझे अप्रतिम खुशी हो रही है कि मेरा सपना पूरा हो रहा है । प्रदर्शनी की तैयारियों का जायेजा लेते हुए उनका कहना रहा कि देश में और विदेशों में उन्होंने कई प्रदर्शनियाँ की हैं, लेकिन जिस तरह की उथल-पुथल से वह अभी गुजर रहे हैं, वैसा उन्होंने कभी महसूस नहीं किया है ।
बिहार के खगौल में वर्ष 1964 में एक साधारण परिवार में जन्मे सुबोध गुप्ता ने वर्ष 1983 से 1988 तक पटना के कॉलिज ऑफ ऑर्ट्स एण्ड क्राफ्ट्स में कला की पढ़ाई की । अपने कला जीवन की शुरुआत उन्होंने पेंटिंग से की, लेकिन जल्दी ही वह इंस्टॉलेशन और परफॉर्मेंस ऑर्ट की तरफ मुड़े । उन्होंने स्टील के बर्तनों को लेकर काम करना शुरू किया और फिर स्टील ही उनकी पहचान बन गया । एक कलाकार के रूप में अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि सुबोध यह मानते हैं कि आम दर्शक भी उनके काम में अपने आप को देखता/पहचानता है । वह याद करते हुए बताते हैं कि करीब पंद्रह-अठारह वर्ष पहले जब उन्होंने स्टील के बर्तनों को लेकर काम करना शुरू किया था तब देश में अधिकतर परिवारों में स्टील के बर्तन ही इस्तेमाल होते थे । हालाँकि स्टील के बर्तनों का प्रचलन अब कम हो गया है, लेकिन फिर भी अभी भी वह इस्तेमाल होते ही हैं । कई ऐसे मौके आये हैं जब उनके काम को देखते हुए कोई कोई बेसाख्ता कह उठता कि 'अरे यह तो मेरे घर की चम्मच जैसी ही चम्मच है ।' अपने काम के आगे खड़े होकर फोटो खिंचवाते लोगों को देख कर उन्हें वास्तविक खुशी मिलती है ।
मंगलवार 04/03/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteआप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार ....
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