Friday, September 25, 2009

सुनियता की कला की आध्यात्मिकता

नई दिल्ली की आईफैक्स कलादीर्घा में हाल ही में प्रदर्शित सुनियता खन्ना की पेंटिंग्स ने कला और आध्यात्म के संबंध को खासे सृजनात्मक रूप में प्रस्तुत ही नहीं किया है, बल्कि एक नई मिथक-चेतना से हमें परिचित भी कराया है | आध्यात्मिक मिथकों का मौलिक व नए-नए विन्यास से युक्त जो रचना-कर्म सुनियता की पेंटिंग्स में दिखता है, उसमें काल-बोध के साथ वस्तु-बोध की विशिष्टता या अनोखापन सहज रूप में आकर्षित भी करता है और प्रभावित भी | 'बिम्ब - प्रतिबिम्ब' शीर्षक के तहत प्रदर्शित पेंटिंग्स न केवल अपनी अंतर्वस्तु में महत्त्वपूर्ण हैं, बल्कि फॉर्म में भी उल्लेखनीय हैं | सुनियता ने अपनी चित्रकृतियों में जीवन के द्वैत को बखूबी दर्शाया है | जीवन के द्वंद्वात्मक स्वरूप को चित्रित करती सुनियता की बनाई पेंटिंग्स उनकी सृजनात्मक क्षमता की साक्षी भी हैं | प्रदर्शित पेंटिंग्स में रूपकालंकारिक छवियों को बहुत सूक्ष्मता के साथ विषयानुरूप चित्रित किया गया है | उनकी पेंटिंग्स का चरित्र रूपकालंकारिक भी है और 'रेटारिकल' भी | सुनियता की पेंटिंग्स के प्रायः समूचे आकार अत्यंत कलात्मक भव्यता से चित्रित हुए हैं और एक स्वप्नलोक व एक रहस्यमयता का परिदृश्य-सा बनाते हैं, पर जो वास्तव में मन की एकाग्रता व गहराई से उपजते हैं और एक दर्शक के रूप में हम पर भी वह कुछ उसी तरह का प्रभाव छोड़ते हैं |

ऐसे समय में जबकि बाज़ार ने कला को लगभग कब्ज़ा लिया है, सुनियता की पेंटिंग्स की यह प्रदर्शनी सूक्ष्म सौन्दर्य और आत्मिक विचारों के नजरिये से उम्मीद की एक रोशनी की तरह लगी है | जीवन की भौतिक अवधारणा और जीवन की आध्यात्मिक अवधारणा के बीच मुख्य अंतर एक ही होता है : वह है विश्व-दृष्टि का अंतर | इस विश्व-दृष्टि ने कला पर भी व्यापक प्रभाव डाला है, और इसी प्रभाव के कारण कला को आत्म में स्थित आत्म की अभिव्यक्ति के रूप में देखने की प्रेरणा मिली है | यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि उन्नीसवीं सदी के उत्तर्रार्ध में रूसी चित्रकार वेसीली केंदिस्की ने आध्यात्म विषय पर म्यूनिख में एक किताब 'ऑन द स्प्रिचुअल इन आर्ट' प्रकाशित की थी, जो कला और आध्यात्म के संबंध के सन्दर्भ में बहुत महत्वपूर्ण
सिद्ध हुई थी | समकालीन कला में आध्यात्म ने एक विषय के रूप में लोगों का ध्यान उस बड़ी प्रदर्शनी के आरम्भ होने के साथ खींचना शुरू किया था जिसे लॉस एंजिल्स के काउंटी म्यूजियम ऑफ मॉडर्न आर्ट में 1986 - 87 और बाद में शिकागो व हयूग में प्रदर्शित किया गया था | उस अवसर पर 'द स्प्रिचुअल आर्ट एब्सट्रैक्ट पेंटिंग 1890 - 1987' शीर्षक से एक महत्वपूर्ण केटलॉग का प्रकाशन भी किया गया था |

आध्यात्म को जीवन की अंतर्यात्रा के मार्ग के रूप में देखा गया है, जिसे आत्म उन्नयन के लिए आवश्यक माना गया है | कला की सार्थकता चूंकि पूर्णता में होती है और यही 'पूर्णता' की जिज्ञासा या खोज या उसे छूने की कोशिश कला का आध्यात्म है | सुनियता की पेंटिंग्स में हम कला के इसी आध्यात्म को अभिव्यक्त होते देख सकते हैं | उनकी चित्रकृतियाँ अपनी कला भाषा और अंतर्वस्तु से पवित्रता का बोध कराती हैं - तो इसका कारण शायद यही होगा कि सुनियता ने इन्हें बहुत आध्यात्मिक भाव से चित्रित किया है | इसी से हम अनुमान लगा सकते हैं कि सुनियता की कला चेतना का आध्यात्मिकीकरण एक लम्बी प्रक्रिया का परिणाम है |

3 comments:

  1. Suniyata Khanna finds creative expression in painting, exploring elusive areas that lie between the finite and the infinite. Suniyata's work is premised on the invisible - something that is important which is inspiring. Art is something that is between scientific and spiritual aspects of life. It is material but not entirely material.

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  2. अनूप अवस्थीNovember 1, 2009 at 5:02 AM

    सुनियता खन्ना की पेंटिंग्स में एक सुनिश्चित कम्पोजीशन दिखता है | उनका विषय का और रंगों का चयन अनूठा है | उनकी कला में कहीं लोक कला के तत्त्व हैं, तो कहीं मानवीय सहजता के दर्शन होते हैं | रेखांकन में सुनियता की प्रवीणता उनके कम में और चमक पैदा करती है |

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  3. मिलिंद पाठकNovember 2, 2009 at 7:38 PM

    मुझे लगा है कि सुनियता की कला के पीछे भारतीय दर्शन एवं सौन्दर्यशास्त्रीय तत्त्वों की प्रेरणा है| उन्होंने अपनी पेंटिंग्स में भारतीय चिंतन, कला और दर्शन का अवधारणात्मक प्रभाव ग्रहण किया है |

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